For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"जिंदगी से रूबरू हम"

अपनी ही जिन्दगी से शर्मसार हैं आज हम,
क्या बनने कि कोशिश थी, क्या बन गये हम|

जज्बातों कि लाश को सीढियाँ बना मंजिल तो पा ली,
पर क्या अब  खुद  को  इन्सान  कह  सकते हैं  हम|

अपनों की भीड़ में, अपनों को ढूंढ़ कर देख लिया,
अपना  तो न  मिला, खुद को  भी खो बैठे  हम|

हर एक रिश्ता बंध गया है, स्वार्थ की जंजीरों से,
न  जाने  कैसे  दलदल में  फंस  गये  हम|

ऐ खुदा ! तुझसे क्या शिकायत करें तेरी कुदरत को लेकर,
आज  अपनी  करतूतों  से तुझे भी शर्मिंदा  कर गये हम|

सुबह को उठकर शराब से जो मुंह धोते हैं रोजाना,
रात को कितनी पी, किससे हिसाब मांग रहे हम|

ये मत सोचना दोस्तों, सदा अफ़सोस करते हैं हालात पर,
अक्सर अपने आसुओं को मुस्कराहटों में बदला करते हैं हम

अपनी ही जिन्दगी से शर्मसार हैं आज हम,
क्या बनने कि कोशिश थी, क्या बन गये हम |

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savi on July 3, 2012 at 7:37pm
आदरणीय सुरेंदर कुमार शुक्ला जी,
जय श्री राधे|
रचना पसंद आई इसके लिए आपका धन्यवाद|
Comment by savi on July 3, 2012 at 7:35pm
आदरणीय योगराज जी,
बहुत बहुत आभार | भविष्य में भी आप  यूँ ही प्रोत्साहित करते रहेगें यही उम्मीद है|  
Comment by savi on July 3, 2012 at 7:30pm


आदरणीय रेखा जी,

जीवन के रंगमंच  अक्सर  में आंसुओं को मुस्कराहटों से छिपाना ही पड़ता है| आपका धन्यवाद|

Comment by savi on July 3, 2012 at 7:28pm
आदरणीय हरीश जी,
नमस्कार|
कविता की सच्चाई आप तक पहुंची इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद|
Comment by savi on July 3, 2012 at 7:26pm
आदरणीय सौरभ जी,
कविता की विवेचना हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद| आशा है आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा|
Comment by savi on July 3, 2012 at 7:18pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,
आपने सही कहा है समाज को  सुधारने के लिए कहीं से तो शुरुआत करनी होगी,  ये शुरुआत हम ही करे, पहला कदम हम ही उठाए, आज इसी की आवश्यकता है| प्रोत्साहन हेतु आपका बहुत बहुत आभार|
Comment by savi on July 3, 2012 at 7:16pm
आदरणीय योगी सारस्वत जी, 
प्रोत्साहन हेतु, आपका  बहुत बहुत आभार|
Comment by Yogi Saraswat on July 3, 2012 at 3:59pm

अपनी ही जिन्दगी से शर्मसार हैं आज हम,
क्या बनने कि कोशिश थी, क्या बन गये हम |

सुन्दर , विचारनीय रचना ! ऐसी ही रचनाओं की आज के समय में जरुरत है !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2012 at 11:58am

अपनी ही जिन्दगी से शर्मसार हैं आज हम,क्या बनने कि कोशिश थी, क्या बन गये हम |आज देश और समाज में जो हो रहा है, उसके लिए कोई और नहीं हम ही जिम्मेदार और शर्मसार है और हमें ही कुछ कदम उठाने होंगे, आशावादी रहकर | ऐसी रचनाओ की जरूरत है, जो आगाह करे कुछ करने को | अच्छी रचना बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2012 at 10:39pm

कविता एक कविता होती है  --मनस-भावनाओं का अनयास संप्रेषण.  इस अनायस संप्रेषण को ही बाद में संयत विधा का प्रारूप दिया जाता है. संप्रेषण का माध्यम अनगढ़ हो अथवा सुगढ़ उसका विशिष्ट हेतु होता है.  उस हेतु के सधने बाद ही एक संप्रेषण को अनुशासन, व्याकरण या शास्त्रीयता का जामा देने की बात होती है ताकि उसका रूप साहित्य हो सके, उसकी पहुँच सार्वभौमिक बन सके. उस संप्रेषण का सार्वभौमिक होना ही उसे इस समाज का चेहरा व थाती हो जाने का अधिकार देता है.

रचनाकार के संप्रेषण को मात्र भावुक न हो कर उसे विधाओं की कसौटियों पर कसना ही होगा, चाहे तुक बद्धता की कसौटी पर अथवा अतुकांत की स्वतंत्रता और अलमस्ती की कसौटी पर.

सावीजी को इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service