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मन भ्रमर
उड़ता जाता, पर
पंख हैं कहाँ
 
 
 
सुख हैं कम
अनगिनत दुःख
जीना तो है ही
 
 
 
डूबता सूर्य
चूमता ज्यों धरा को
क्षित्तिज पर
 
 
 
 
सड़क पर
चमचमाती धूप
ज्यों रेगिस्तान
 
 
 
अब तो आओ
घटाटोप लेकर
हे मॉनसून
 
 
 
जल से भरा
सागर का गागर
फिर भी प्यासा

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Comment

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Comment by Harish Bhatt on July 7, 2012 at 11:18am

नीलम जी नमस्‍ते, बहुत अच्‍छा लिखा है बहुत बहुत बधाई

Comment by प्रवीण कुमार श्रीवास्तव on July 6, 2012 at 11:29pm
जल से भरा
सागर का गागर
फिर भी प्यासा
अति सुन्दर भाव.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 6, 2012 at 11:17pm

बहुत सुन्दर हाइकु नीलम जी एक से बढ़कर एक 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 6, 2012 at 8:45pm

मन भ्रमर

उड़ता जाता, पर
पंख हैं कहाँ....Neelam ji sare k sare haiku lajwab...
Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:24pm

नीलम जी ,सादर नमस्ते ,

अब तो आओ
घटाटोप लेकर
हे मॉनसून ,सच में बेसब्री से इंतज़ार है ,बढ़िय हाइकू पर बधाई 
 
Comment by sangeeta swarup on July 6, 2012 at 11:00am

थोड़े से शब्द 

गागर में सागर 

हाइकु बने .....

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 

कृपया ध्यान दे...

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