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Neelam Upadhyaya's Blog (56)

कुछ हाइकू

तपती धरा

छिड़क रहा नभ

धूप की बूंद 

 

प्रचंड सूर्य

वीरान पनघट

झुलसी क्यारी

 

सूखे पोखर

जल रहा अंबर

प्यासे पखेरू

 

जलते दिन

भयावह गरमी

प्यासी है दूब

   

बिकता पानी

बढ़ता तापमान

जग बेहाल

   

दहकी धूप

गर्मी के दिन आये

निठुर बड़े

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Added by Neelam Upadhyaya on June 11, 2019 at 4:00pm — 7 Comments

जब तुम थीं माँ

खुशबू से भरा रहता…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on March 14, 2019 at 3:00pm — 6 Comments

हाँ मैं नारी हूँ

हाँ मैं नारी हूँ

घर की मर्यादा हूँ…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on March 8, 2019 at 10:30am — 6 Comments

भाई दूज

सजाये कुमकुम अक्षत की थाल

मन में भर अटूट प्रेम स्नेह

आशीष भरे हाथ तिलक लगाएँ

भाई के भाल पर।

बीती बातें बचपन की

वो लड़ाई झगडे भाई बहन के

स्नेह प्यार ही बचे रहे

भाई-बहन के ह्रदय में।

अनमोल वादा रक्षा का

बहन पाए भाई से

भाई-दूज के अवसर पर

मन क्यों न हर्षित हो जाये।

दूर रहे या पास रहे भाई

खुशहाली की कामना लिए भाई की

स्नेह प्रेम का दीप जलाये बहन

ऐसा ही रिश्ता भाई-बहन…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on November 8, 2018 at 4:00pm — 6 Comments

कुछ हाइकु

धनतेरस

धन धान्य हो भरा

शुभकामना

  

धन बरसे

लक्ष्मी रहें प्रसन्न

सब हरसें

  

झालर दीप

सुंदर उपहार

सजे बाजार

  

हल्की है ज़ेव

महंगाई की मार

सुस्त ग्राहक

  

प्रथा निभाएँ

धनतेरस पर

थोड़ा ही लाएँ

 

 धनतेरस

खुशियाँ दे अपार

प्यारा त्योहार

 

…. मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 3:30pm — 7 Comments

दो कवितायें मुक्तछंद

मौसम

धूप की तपन

विदा होने को तैयार

नन्ही कोपलों के फूटने का

पौधों को इंतजार

छांह को ढोते बादल

अब बूंदें चुराएँगे

इस कालचक्र के बीच

मौसम बदल जाएंगे ।

 

सीप

 

चमकते मोती

पलते सीप के सीने में

पिरोये जाकर धागों में

शोभा बढ़ाते गले की शान से

छुपाकर रखा मोती को

दर्द सजाकर सीने में

छाती चीरकर दिया…

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Added by Neelam Upadhyaya on October 5, 2018 at 4:13pm — 14 Comments

कुछ हाइकू

उडी पतंग

छूट गयी जो डोर

कटी पतंग ।

कोख में मारा

बेटी को, जन्मे कैसे

कोई भी लाल ।

 

मेघों की दौड़

थक कर चूर, तो

बरसें कैसे ।

 

इच्छा किनारा

ज़िन्दगी की नदी में

आशा की नाव

 

संसार सार

जीवन है, सब हैं

शेष नि:स्सार

 

... मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on July 19, 2018 at 4:00pm — 9 Comments

हाइकू

न कर जिक्र

जब तक है जान

काहे की फिक्र

 

मन अंतस

जजवातों से भरा

पर अकेला

 

धरते धीर

शिखर पहुँचते

बैसाखी पर

  

क्या पा लिया था

ये तब जाना, जब

उसे खो दिया

खुशी ही नहीं

तल्खियाँ भी देती हैं

तनहाईयाँ

 

… मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on July 10, 2018 at 4:00pm — 17 Comments

जीवन यथार्थ

संवेगों के झंझावात में

बहती रही सारी खुशियाँ

इतनी क्षणिक सिद्ध हुईं

आंसुओं के समंदर

डुबोते चले गए यादों को

इतनी कमजोर निकलीं

खामोशियों के बीच

गुस्से बदल गए नफ़रतों में

इतने अप्रत्याशित थे

आशाएँ और अभिलाषाएं

सिसक रही कहीं

दम तोड़ती सी ज्यों

पर जीवन की जुगुत्सा

जूझना सिखाती परिस्थिति से

सबक का एहसास कराते

सौहर्द्र, प्रेम और संभावनाओं का

निरंतरता, यथार्थता , शाश्वतता

यही जीवन है…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on July 5, 2018 at 3:20pm — 14 Comments

अब तो आओ मेघ

बहुत हुआ सूरज का तपना

अब तो आओ मेघ

जम कर बरसो मेघ

 

तपती धरती का सीना हो ठंढा 

सूखी मिट्टी महके सोंधी

बंजर सी जमीं पर

अब फैले हरियाली

ठूंठ बन गए  पेड़ों के

पत्ते  अब हरियाएँ 

नभ पर जमकर छा जाते

गरज का बिजली कड़काते

संग में वर्षा भी  लाते

गर्मी डरकर जाती भाग

मौसम हो जाता खुशहाल

पर बादल तो

इधर से आये उधर गए

हम तो आस ही लगाए रहे

खुली चोंच लिए पक्षी

प्यासे ही रह गए

खेत जोतने को

हल लिए किसान…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 30, 2018 at 3:25pm — 8 Comments

हाइकू

अरण्य घन

सुन स्वर लहरी

मादल थाप

  

पवन मंद

बिखरे मकरंद

नव अंकुर

  

ढीठ हवाएँ

पत्ते बुहार रहीं

पतझड़ में

  

पर्वत नाले

पार करती चली

चंचल नदी

 

 मेघ ढिठौना

तपते आकाश में

बरसेगा क्या

… मौलिक एवं अप्रकाशित

(मादल की थाप का प्रसंग आशापूर्ण देवी जी की कहानी से )

 

 

Added by Neelam Upadhyaya on June 25, 2018 at 3:00pm — No Comments

हाइकू

अंबर अटा

रेगिस्तानी धूल से

जीना मुहाल

 

 

चढ़ती धूप

सुस्ताने भर ढूँढे

टुकड़ा छांव

 

 

खड़ी है धूप

छांव से सटकर

प्रतीक्षा सांझ

 

कटते पेड़

मौन रोता जंगल

सुनता कौन

 

 

… मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on June 20, 2018 at 3:30pm — 12 Comments

पापा तुम्हारी याद में

जीवन की पतंग

पापा थे डोर

उड़ान हरदम

आकाश की ओर

पापा सूरज की किरण

प्यार का सागर

दुःख के हर कोने में

खड़ा उनको पाया

छोटी ऊँगली पकड़

चलना मुझको सिखलाया

हर उलझन को पापा

तुमने ही सुलझाया

हर मुश्किल में पापा

प्यार हम पर बरसाया

मेरे हर आंसू ने

तुम्हारी आँखों को भिगोया

मेरे कमजोर पलों में

मेरा विश्वास बढ़ाया

तुम से बढ़कर पापा

प्यार न कोई पाया

प्यार न कोई पाया।

मौलिक एवं…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 17, 2018 at 6:05pm — 15 Comments

हाइकू

झरता रहा

माँ के आशीर्वाद सा

हरसिंगार

 

उषा की लाली

रेशम का आँचल

वात्सल्य माँ का

पुलक तन

शाश्वत है बंधन

नमन मन

  

स्नेहिल स्पर्श

वात्सल्य का कंबल

संबल मन

 …

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on June 14, 2018 at 12:30pm — 10 Comments

कुछ हाइकु

तुम जो आए

पत्ते हरे हो गए

पतझड़ में ।  

 

सूखे गुलाब

किताब में अब भी

खुशबू भरे ।

 

 

माँ तो सहती

एक सा दर्द, पर  

बेटी पराई ?

 

 

बढ़ती उम्र

घटती हुई सांसें

जिये जा रहे ।

 

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on May 10, 2018 at 2:04pm — 10 Comments

बेटी का विवाह

रामप्रसाद जी की इकलौती बेटी की शादी थी । सुबह से गहमा-गहमी लगी हुयी थी । रामप्रसाद जी का सबके साथ इतना अच्छा व्यवहार था उनके अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले भी इस विवाह को लेकर उतने ही उत्साहित थे जितने स्वयं रामप्रसाद जी । रामप्रसाद जी के बराबर वाले घर में रहने वाले मोहनलाल जी से कभी छोटी बातों को लेकर हुयी कहा-सुनी इतनी बढ़ गयी थी कि आपस में एक-दूसरे को देखना तो क्या नाम भी सुनना पसंद नहीं था । इस वजह से मोहनलाल जी को विवाह में शामिल होने का बुलावा भी नहीं भेजा था उन्होने । रामप्रसाद जी कि पत्नी…

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Added by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 4:04pm — 12 Comments

योजना

हवा खामोश है

फिजा भी उदास

बाजार सजा है

नफ़रतों का

मंदिर, मस्जिद, गिरजा,

क्या देखें

सभी जैसे निर्विकार

सड़कें तो पट गयी

जिंदा लाशों से

इंसानियत मर रही

आस दरक रही

सियासत व्यस्त है

दरकार दबाने में

अभिलाषा बुझ रही

आँसू निकलते नहीं

शब्द बोलते नहीं

'कठुआ', 'उन्नाव', 'दिल्ली,

'…………', '……….'

और कितने…

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Added by Neelam Upadhyaya on April 17, 2018 at 12:20pm — 7 Comments

कुछ हाइकु

पढ़ाते रहे

कभी पढ़ जो पाते

बच्चे का मन ।

 

आदर्शवाद ?

हुआ किताबी भाषा

धूल फाँकता ।

 

घर आँगन

सूना, मन उदास

बची है आस

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:52pm — 6 Comments

कुछ हाइकु

बीत जाएगी

जिंदगी, काटो मत

जीवन जियो

 

पतंग जैसे

डोर है जिंदगी की

उड़ी या कटी

 

नहीं टूटते

अपनत्व के तार

आखिर यूँ ही

 

 सूर्य ग्रहण

हार गया सूरज

परछाई से

नदी बावरी

सागर में समाना

अभीष्ट जो था

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Added by Neelam Upadhyaya on March 14, 2018 at 3:30pm — 4 Comments

कुछ हाइकु

झूमी सरसों

धरती इतरायी

फगुनाहट

 

बसंत आया

ओढ़ पीली चुनर

खेत बौराया

 

बौर आम के

फैल गयी सुगंध

झूमा बसंत

 

टेसू क्या फुले

अंगड़ाया पलाश

फागुन आया

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Added by Neelam Upadhyaya on February 22, 2018 at 4:47pm — 3 Comments

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