बहुत हुआ सूरज का तपना
अब तो आओ मेघ
जम कर बरसो मेघ
तपती धरती का सीना हो ठंढा
सूखी मिट्टी महके सोंधी
बंजर सी जमीं पर
अब फैले हरियाली
ठूंठ बन गए पेड़ों के
पत्ते अब हरियाएँ
नभ पर जमकर छा जाते
गरज का बिजली कड़काते
संग में वर्षा भी लाते
गर्मी डरकर जाती भाग
मौसम हो जाता खुशहाल
पर बादल तो
इधर से आये उधर गए
हम तो आस ही लगाए रहे
खुली चोंच लिए पक्षी
प्यासे ही रह गए
खेत जोतने को
हल लिए किसान
जोहता रहता आसमान
बून्द को तरसती
उदास बैठी प्रकृति
बहुत हुआ अब तो आओ मेघ
जम कर बरसो मेघ
..मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी, रचना की पसंदगी के लिए आभार।
मुह तरमा नीलम साहिबा, सुन्दर रचना हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
आदरणीय लक्षमण धामी जी, रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय समर कबीर जी, रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, बहुत बहुत आभार।
आ. नीलम जी, अच्छी रचना हुयी है, हार्दिक बधाई ।
मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,
बारिश की कामना को केंद्र में रखकर रची गई बहुत ही लाजवाब कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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