अंबर अटा
रेगिस्तानी धूल से
जीना मुहाल
चढ़ती धूप
सुस्ताने भर ढूँढे
टुकड़ा छांव
खड़ी है धूप
छांव से सटकर
प्रतीक्षा सांझ
कटते पेड़
मौन रोता जंगल
सुनता कौन
… मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अनामिका जी, उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार।
सुंदर हाइकु लिखे हैं आदरणीया
आदरणीय नरेंद्र सिंह जी, बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी, बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ।
खुब सुन्दर
वाह सुन्दर बहुत सुन्दर आदरणीया
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी।बेहतरीन हाइकू।
आदरणीय श्याम नारायण जी, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
सुन्दर सार्थक रचना ने लिये आपको बधाई ….सादर । |
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