न कर जिक्र
जब तक है जान
काहे की फिक्र
मन अंतस
जजवातों से भरा
पर अकेला
धरते धीर
शिखर पहुँचते
बैसाखी पर
क्या पा लिया था
ये तब जाना, जब
उसे खो दिया
खुशी ही नहीं
तल्खियाँ भी देती हैं
तनहाईयाँ
… मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, बहुत बहुत आभार।
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी, बहुत बहुत आभार।
सुन्दर रचना
वाह भाव भरे हाइकू आदरणीया..बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी जी, रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार।
बहुत अच्छे हाइकु आद० नीलम जी वर्तनी की तरफ इशारा हो ही चुका है थोड़े से फेर बदल से बहरीन हो जाएंगे .हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, विजय निकोरे जी, गलतियों को नज़र अंदाज करके भी रचना की तारीफ कर मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार।
सभी गुणी जनो से आग्रह है कि आप अवश्य ही गलतियों को इंगित किया करें।
मन अंतस
जज़्बातों से भरा
पर अकेला
खुशी ही नहीं
तल्ख़ियाँ भी देती हैं
तन्हाईयाँ
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, वर्तनी सम्बन्धी गलतियों को इंगित करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद तथा उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार । मैंने कोशिश किया मुख्य रचना में सुधार के लिए लेकिन नहीं हो पाया । अब यहीं पोस्ट किया है। दर असल तीन दिनों से पावर सप्लाई ने बहुत तंग किया है। पोस्ट करते समय भी नेट ने बड़ा तंग किया। कॉपी पेस्ट में जो लिखा वो कंप्यूटर महाराज ने अपने हिसाब से वर्तनी कर लिख दिया। यहाँ तक तो ठीक है अपनी प्रकाशित रचना भी आज ही देख पायी हूँ। कल प्रयास कर के भी लॉग इन नहीं कर पायी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय समर कबीर जी, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार।
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