उडी पतंग
छूट गयी जो डोर
कटी पतंग ।
कोख में मारा
बेटी को, जन्मे कैसे
कोई भी लाल ।
मेघों की दौड़
थक कर चूर, तो
बरसें कैसे ।
इच्छा किनारा
ज़िन्दगी की नदी में
आशा की नाव
संसार सार
जीवन है, सब हैं
शेष नि:स्सार
... मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 उपाध्याय जी बहुत सुंदर हाइकु हुए हैं आपको हार्दिक बधाई ।
आदरणीय समर कबीर जी, बहुत बहुत आभार।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत बहुत आभार।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आपका बहुत धन्यवाद एवं आभार।
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,अच्छे हाइकू हुए,बधाई स्वीकार करें,जनाब आरिफ़ भाई की बातों का संज्ञान लें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी। बहुत शानदार हाइकू।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,
अच्छे हाइकु । एक बात कहना चाहूँगा कि हाइकु का जितना शिल्प मारक होगा वह उतना प्रभावशाली बनेगा । हाइकु में शिल्प बहुत मायने रखते हैं । केवल अक्षर गणना करना भर नहीं होता है । इप मेरे कहने का आशय समझ गई होगी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर |
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