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बीत जाएगी

जिंदगी, काटो मत

जीवन जियो

 

पतंग जैसे

डोर है जिंदगी की

उड़ी या कटी

 

नहीं टूटते

अपनत्व के तार

आखिर यूँ ही

 

 सूर्य ग्रहण

हार गया सूरज

परछाई से

नदी बावरी

सागर में समाना

अभीष्ट जो था

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 11:10am

मोहतरमा नीलम जी आदाब,अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Harash Mahajan on March 15, 2018 at 6:41pm

आ ० नीलम जी बहुत ही सुंदर हायकू पेश किये हैं आपने |
"

पतंग जैसे

डोर है जिंदगी की

उड़ी या कटी"

अति सुंदर !!

बधाई

सादर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 14, 2018 at 9:17pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सादर, अच्छा प्रयास है आपका हायकू पर. ५-७-५ तो उत्तम है किन्तु कुछ कसाव  और होना चाहिए. सादर.

Comment by Mohammed Arif on March 14, 2018 at 6:18pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,

                         ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक सोच , ज़िंदगी की परिभाषा और आशा , विश्वास को रेखांकित करते बहुत ही सुंदर हाइकु की रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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