हवा खामोश है
फिजा भी उदास
बाजार सजा है
नफ़रतों का
मंदिर, मस्जिद, गिरजा,
क्या देखें
सभी जैसे निर्विकार
सड़कें तो पट गयी
जिंदा लाशों से
इंसानियत मर रही
आस दरक रही
सियासत व्यस्त है
दरकार दबाने में
अभिलाषा बुझ रही
आँसू निकलते नहीं
शब्द बोलते नहीं
'कठुआ', 'उन्नाव', 'दिल्ली,
'…………', '……….'
और कितने ?
अनगिनत योजनाएँ, पर
क्या घावों पर मरहम की
बनी है कोई योजना ?
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. नीलम जी,
तेवर और पीड़ा से भरपूर रचना के लिए बधाई
सादर
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार । आप सभी गुणीजनों से मार्गदर्शन का आग्रह रहेगा।
आदरणीय समर कबीर जी, नमस्कार । उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीय तेजवीर जी, नमस्कार । उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीया नीलम जी आपकी रचना समसामयिक घटनाओं को चरितार्थ करती हुई विल्कुल यथार्थ परक अनमोल रचना है इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई
मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,बहुत उम्दा रचना,बहतरीन कटाक्ष,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी। बहुत सुंदर और समसामयिक कविता।
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