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सहमी सर्दी

कारागृह में अब

फागुन आया

 

सड़क संग

चलती ही रहती

पगडंडी भी

 

टंगे रहते

सोने के झूमर से

अमलतास

 

अर्चन भर

झिलमिलाता दिया

बन आरती

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Neelam Upadhyaya on February 20, 2017 at 12:12pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, उसमानी जी एवं सुरेन्द्र नाथ जी, उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ।  

Comment by नाथ सोनांचली on February 18, 2017 at 4:45am
आद0 नीलम उपाध्याय जी सादर अभिवादन। बेहतरीन हाइकू बने है, बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2017 at 1:42am
पुनः बेहतरीन सारगर्भित सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
Comment by Mohammed Arif on February 16, 2017 at 5:29pm
वाह!वाह!!आदरणीया नीलम जी आदाब, फागुन की याद ताज़ा कर दी आपने । सामयिक हाइकु बधाई स्वीकार करें ।

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