खुशबू से भरा रहता
वात्सल्य का कंबल
जब तुम थीं माँ
झरता रहता हरदम
तुम्हारा आशीर्वाद
जैसे हरसिंगार
उड़ता रहता हर ओर
तुम्हारे स्मित मुस्कान से
मधुर मकरंद
उषा की लाली जैसा
फहर रहा होता
हवा के झोंकों संग
तुम्हारा रेशमी आंचल
जीवन-समय का हर सफर
हर दिन की बिखरती रौशनी
हर शाम की गहराइयाँ
दिलाती हैं तुम्हारी याद माँ
रात की अंधेरी खाइयों में
बिखरती रौशनी सा
दिखाई देता है तुम्हारा चेहरा
तारों की झिलमिल के बीच
टिमटिमाती रहती हो तुम
दिशाभ्रम में दिखाती रास्ता
बसी हो तुम माँ
मेरे अन्तर्मन में
झुकता है माँ नमन से मन
... मौलिक एवं अप्रकाशित।
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, रचना की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीय सुशिल शर्मा जी, रचना की तारीफ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीय समर कबीर जी, रचना को समय देने के लिए हार्दिक आभार।
वाह उत्तम अतिउत्तम भाव सृजन आदरणीया..
आदरणीया नीलम जी इस भावपूर्ण रचना के लिए दिल से बधाई।
मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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