रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो
दोनों भिगो जाती हैं ।
- दीप्ति शर्मा
Comment
आदरणीय प्रवीण कुमार जी बहुत बहुत आभार आपका
सुन्दर रचना, खासतौर से
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है
पंक्तियाँ सराहनीय हैं.
अभिव्यक्ति बहुत सहज है और अर्थ सापेक्ष. भावनाएँ ही ऋतुओं के होने का अर्थ हैं. इस भावपगी रचना के लिये धन्यवाद.
आदरणीय अरुण जी , आपका बहुत बहुत आभार आपको कविता पसंद आयी
बहुत कोमल एहसासों को शब्द दिए आपने ! बहुत बढ़िया !
आदरणीय संदीप जी , आपका बहुत बहुत आभार आपको कविता पसंद आयी
वर्षा के क्षणों में महसूस किये गए लम्हों का सुन्दर चित्रण किया आपने| बढ़ाई दीप्ति जी!
आदरणीया रेखा जोशी जी , आपका बहुत बहुत आभार अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा
आदरणीय अलबेला खत्री जी , आपका बहुत बहुत आभार अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा
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