For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Deepti sharma's Blog (11)

धूरी

कब तक बदहवास में
चलती रहोगी
एक ही धूरी से
एक ही रेखा पर
धागे भी टूट जाते हैं
सीधा खींचते रहने पर

अंधेरा नहीं है
तो पैर नहीं डगमगायेंगे
पर ये धूरी बदल रही है
सीधी ना होकर गोल हो गयी है
तुम्हारी चाल के अनुरुप
उसी दिशा में प्रत्यक्ष
तुम्हारी धूरी पर
बस मैं ही खडा हूँ ।
-दीप्ति शर्मा




मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by deepti sharma on May 16, 2013 at 9:42am — 5 Comments

उन्मुक्तता

क्यों मिल गयी संतुष्टि

उन्मुक्त उड़ान भरने की

जो रौंध देते हो पग में

उसे रोते , कराहते

फिर भी मूर्त बन

सहन करना मज़बूरी है

क्या कोई सह पाता है रौंदा जाना ???

वो हवा जो गिरा देती है

टहनियों से उन पत्तियों को

जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ

और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना

स्वीकार नहीं उन्हें

तकलीफ होती है

क्या खुश होता है कोई

रौंधे जाने से ??

शायद नहीं

बस सहती हैं और

वो तल्लीनता…

Continue

Added by deepti sharma on February 13, 2013 at 9:26pm — 15 Comments

ओ मीत

मेरे गीत तेरी पायलिया है

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

प्रेम गीत मैं गा रहा हूँ

तेरे लिए ही आ रहा हूँ

मिलन को बरस रही बादरिया है

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

मद्धम हवा साथ चली है 

दिल में दीपक सी उजली है 

देख झलक गयी गागरिया है 

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

अगली पहर तक आ जाऊंगा 

तुझे दुल्हन बना…

Continue

Added by deepti sharma on January 22, 2013 at 3:00pm — 4 Comments

वो अधजली लौ.

रौशनी तो उतनी ही देती है

कि सारा जहाँ जगमगा दे

निरंतर जल हर चेहरे पर

खुशियों की नदियाँ बहा दे

फिर भी नकारी जाती है क्यों??

वो अधजली लौ



मूक बन हर विपत्ति सह

पराश्रयी बन जलती जाती

परिंदों को आकर्षित कर

जलाने का पाप भी सह जाती

फिर भी दुत्कारी जाती है क्यों??

वो अधजली लौ



जीवन पथ पर तिल तिल जलती

आघृणि नहीं बन कर शशि

हर घर को तेज से अपने

रौशन करते हुए है चलती

फिर भी धिक्कारी जाती है क्यों??

वो अधजली… Continue

Added by deepti sharma on October 4, 2012 at 9:37pm — 4 Comments

क्यों प्राण प्रियतम आये ना ??

चाँदनी ढल जायेगी फिर

क्या मिलन बेला आयेगी

मिलने को व्याकुल नयन ये तो

क्यों प्राण प्रियतम आये ना??



नयन बदरा छा गये

रिम-झिम फुहारों की घटा

मुझमें समाने और अब तक

क्यों प्राण प्रियतम आये ना??



विरह की इस वेदना को

अनुपम प्रेम में ढाल

अमानत बनाने मुझे अपनी

क्यों प्राण प्रियतम आये ना??



मुख गरिमा के चंचल तेवर

अलौकिक कर हर प्रेम भाव

मेरे मुख दर्पण के भाव देखने

क्यों प्राण प्रियतम आये ना??



निहारिका सा… Continue

Added by deepti sharma on September 5, 2012 at 8:18pm — 9 Comments

तुम आओगे ना ??

अहसासों के दरमियां 

मेरे ख़्वाबों को जगाने 

जब तुम आओगे ना 

कुछ शरामऊँगी मैं 

धडकनों को थामकर 

कुछ बहक सा जाऊँगी मैं 

मुझे बहकाने तुम आओगे ना ????



इठलाती सी धूप में 

रूख पर नक़ाब गिराने 

जब तुम आओगे ना 

तेज़ किरणें शरमा जायेंगी 
तुम्हारे अक्स के आ जाने से 

मेरी परछाई को ख़ुद में 

समाने तुम आओगे ना…
Continue

Added by deepti sharma on August 27, 2012 at 6:30pm — 15 Comments

हिमालय

हिमालय की मौन आँखों में

शान्त माहौल के परिवेश में

कुछ प्रश्नों को देखा है मैंने ।



खड़ा तो है अडिग पर

उसके माथे की सलवटों पर

थकावट के अंशों को देखा है मैंने ।



प्रताड़ित होता है वो तो क्यों ?

नहीं समझते हो तुम

क्रोधित हो वो कैसे हिला दे

धरती को ये देखा है मैंने ।



जब बहती हुयी पवन कुछ

कहकर पैगाम सुनाती है तो

पैगाम -ए - दर्द को छलकते

धरती पर बहते देखा है मैंने ।



कभी ज्वाला सा जल जाता है …

Continue

Added by deepti sharma on August 17, 2012 at 2:00pm — 9 Comments

चौराहा

जिंदगी का ये चौराहा , अपने दम पर गर्वित हाथ फैलाये खड़ा ,कुछ इठलाकर , सोचे कि मंजिल दिखता है सबको राह बताता है । जिंदगी के इस चौराहे पर कितनी ही गाड़िया आती चली जाती हैं , फिर बचती है बस वो सूनी खाली राह , इंतज़ार में फिर किसी मुसाफ़िर के जो आयेगा और अपनी मंजिल पायेगा , बढता चला जायेगा । पर जब राह ही मालूम ना हो तो ये क्या आभास करायेगा , राह दिखाने का आभास या राह में अकेले खो जाने का आभास । क्या ये चौराहा अकेलेपन में चुभती उस साँस को कुछ आस दिलायेगा या देख उसे हँसता जायेगा , जोर से या मन ही मन…

Continue

Added by deepti sharma on August 1, 2012 at 12:27pm — 11 Comments

हिसाब

हिसाब ना माँगा कभी 

अपने गम का उनसे 

पर हर बात का मेरी वो 

मुझसे हिसाब माँगते रहे ।

जिन्दगी की उलझनें थीं 

पता नही कम थी या ज्यादा 

लिखती रही मैं उन्हें और वो 

मुझसे किताब माँगते रहे ।

 

काश ऐसा होता जो कभी 

बीता लम्हा लौट के आता 

मैं उनकी चाहत और वो 

मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

 

कुछ सवाल अधूरे  रह गये 

जो मिल ना सके कभी 

मैंने आज भी ढूंढे और वो 

मुझसे जवाब माँगते…

Continue

Added by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:39pm — 18 Comments

बरसात

रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो 
दोनों भिगो जाती हैं ।

- दीप्ति शर्मा

Added by deepti sharma on July 8, 2012 at 8:30pm — 31 Comments

प्राण प्रिये

वेदना संवेदना अपाटव कपट

को त्याग बढ़ चली हूँ मैं

हर तिमिर की आहटों का पथ

बदल अब ना रुकी हूँ मैं

साथ दो न प्राण लो अब

चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।



निश्चल हृदय की वेदना को

छुपते हुए क्यों ले चली मैं

प्राण ये चंचल अलौकिक

सोचते तुझको प्रतिदिन

आह विरह का त्यजन कर

चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।



अपरिमित अजेय का पल

मृदुल मन में ले चली मैं

तुम हो दीपक जलो प्रतिपल

प्रकाश गौरव  बन चलो अब

चलने दो मुझे ओ प्राण…

Continue

Added by deepti sharma on July 5, 2012 at 1:00am — 49 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service