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नयन बदरा छा गये
रिम-झिम फुहारों की घटा
मुझमें समाने और अब तक
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??
अभिनव ..... एक बेहतरीन रचना ...... वियोग और विरह की दशा को दिशा देती इस रचना के लिए बधाई दीप्ति जी
दीप्ति जी
इस वियोग रस पूर्ण रचना ने मन को छू लिया
हार्दिक बधाई
निहारिका सा प्रेम रूप
छलकत निकट पनघट
निहारने उस प्रेम को
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??,अति सुंदर अभिव्यक्ति दीप्ति जी ,बधाई
Sundar Abhivyakti
कुछ बातों को बिम्ब और प्रतीकों में कही जाय तो और आनंद आ जाय, सुन्दर रचना , बधाई हो |
चाँदनी ढल जायेगी फिर
क्या मिलन बेला आयेगी
मिलने को व्याकुल नयन ये तो
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??
अत्यंत सुन्दर प्रयास दीप्ति........!!!!
विरह की इस वेदना को
अनुपम प्रेम में ढाल
अमानत बनाने मुझे अपनी
क्यों प्राण प्रियतम आये ना??
बहुत ही खूबसूरत शब्दों में आपने व्यथा की dasha ko vyakt kiya है ! बहुत badhiya , deepti जी !
दीप्ति जी, विरह की अद्भुत दशा को उभारते इस गीत के लिये बधाई.
कोशिश कर इस रचना और सान्द्र करें. अत्यंत संभावनाओं से भरी है आपकी भाव-दशा. दूसरे, आपकी प्रस्तुतियों में साहस भी है.
शुभेच्छाएँ.
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