अनछुआ चैतन्य
क्या याद हैं
तुम्हें
वो लम्हे,
जब
हम तुम मिले थे ?
तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नहीं सुना था हमने,
बल्कि,
सुना था हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वैत कर दिया था....
तब सिर्फ़
सान्निध्य को
ही नहीं जिया था हमने,
बल्कि,
जिया था हमने
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....
मेरे पास
कुछ न था
तुम्हें देने को
सिवाय अपनी चेतना के,
और तुम्हारे पास भी
सिर्फ़ चेतना ही तो थी
जिसे बाँटा था हमने
एक दूसरे से....
तब से
ये
‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अन्धकार से दूर
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…
(23-02-2012)
Comment
जिया था हमनें
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....
खुबसूरत पेशकश ... बधाई डॉ . प्राची जी
हाँ, यह प्रक्रिया reciprocal हुआ करती है. वृत्तियों की शुचिता के लिए प्रारब्ध का सधना आवश्यक है. और यही कर्म की सत्ता का नियामक होता है. सब गुँथे हुए हैं ..
सही है.
वृत्तियों में अनवरत शुचिता चित्त के परिष्कृत होने का कारण होता है. यही परिष्कार चेतन की समृद्धि है. आवश्यक नहीं कि अवचेतन के समस्त विचार शाब्दिक होना चाहें. चैतन्य भाव समझ की सीमाओं का विस्तार बताता है. और यह अनवरत बढ़ता जाता है.
‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अंधकार से दूर
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…
वाह वाह बहुत खूब सुंदर रचना बधाई आपको
बड़ी ही सफाई से आपने प्रेम को आध्यत्म में लीन किया है
हमें अद्वेत कर दिया था....बहुत सुन्दर प्रयोग
जिया था हमनें
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की.... अनोखी प्रस्तुति बहुत ही लाजवाब लगे
प्राची जी हार्दिक बधाई इस बेहेतरिन रचना के लिए
खामोशी, शून्यता और चैतन्य के बिम्बों पर विचारों के सापेक्ष अद्वैत होते जाना किसी सम्बन्ध का मूल है.
अनछुआ-चैतन्य .. यह विचित्र सा कर्मधारय लगा है. लेकिन अच्छा लगा है.
अभिव्यक्ति में भावनात्मक विस्तार को समेटने का प्रयास है. इस ऊर्जस्विता को हार्दिक बधाई.
आदरणीया डा प्राची जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online