झूमो, नाचो, मौज मनाओ बाबाजी
जीवन का आनन्द उठाओ बाबाजी
ये क्या, जब देखो तब रोते रहते हो ?
घड़ी दो घड़ी तो मुस्काओ बाबाजी
मुझ जैसे मसखरे का चेला बन जाओ
दिवस रैन दुनिया को हँसाओ बाबाजी
ये सब नेता रक्तपिपासु कीड़े हैं
इनसे मत कुछ आस लगाओ बाबाजी
जनता के दुःख को जो अपना दुःख समझे
अब ऐसी सरकार बनाओ बाबाजी
एक मिनट में ऐसी-तैसी कर देगी
बीवी को मत आँख दिखाओ बाबाजी
ओ बी ओ की परिपाटी है 'अलबेला'
आपस में सब प्यार लुटाओ बाबाजी
-अलबेला खत्री
Comment
समझ गया राजेश कुमारी जी...समझ गया
__सबको वही समझ में आ रहा है....हा हा हा
बहुत सुन्दर सार्थक बात कहती हुई कडवी सच्चाई बयान करती हुई इस बाबा ग़ज़ल के लिए बहुत बधाईयाँ स्पेशली एक शेर के लिए तो बहुत सारी बधाई कौन सा शेर तुम समझ गए होंगे :):):)
धन्यवाद संदीप जी,
आपके कथन से सहमत हूँ...........उपचार होना चाहिए..........परन्तु मेरा मत है कि जब तक उपचार न हो तब तक ..पीड़ा पर नज़र रखी जाये ..ताकि उसके उपचार के लिए भूमिका बन सके...
__सादर !
एक मिनट में ऐसी-तैसी कर देगी
बीवी को मत आँख दिखाओ बाबाजी ....हा हा हा हा हा हा हंसी रुकी नहीं मेरी वाह वाह
बहुत सुन्दर रचना सर जी
आपकी रचना में हास्य के साथ साथ छुपी होती है एक पीड़ा मन की पीड़ा एक व्यथा जिससे सभी पीड़ित हैं पर उजागर करने का हौसला नहीं है
जनता के दुःख को जो अपना दुःख समझे
अब ऐसी सरकार बनाओ बाबाजी
ये सब नेता रक्तपिपासु कीड़े हैं
इनसे मत कुछ आस लगाओ बाबाजी
इनपे बदलाव जरुरी है ये आप भी मानते हैं ये एक सत्य है कडवा जिसके घूँट गरल से कम नहीं है पर समझ नहीं आता है सभी शिव बनने के लिए क्यूँ आतुर हैं
आखिर कहाँ से आ रही है ये सहनशीलता
या ये एक भीरुपना है
एक चिंगारी तो उडानी ही होगी उस महल की ओर जो बना है केवल कागजों से
जिसमे हर बात कागजी आधारों पे कही जाती है
चाहे फिर वो आँखों से आंशु ही बहाना क्यूँ न हो
बहुत बहुत बधाई आपको सर जी लिखते रहिये
कुछ उपचार भी बताइए समस्याओं को हम सब जानते हैं पीड़ा हम सबको है उसका कुछ उपचार भी बताइये तो बात तगड़ी हो जाए
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