दीवान में
बटोर कर रखा
बरसों पुराना सामान
कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....
उसमे तो कैद होते हैं
ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने
जो हमें उस रूप में ढालते हैं
जो आज हम हैं....
हमारी पूरी ज़िंदगी
समेटे होती हैं
वो कुछ
गिनी चुनी निशानियाँ....
कुछ गुड्डे- गुडिया
जिनकी आँखों में
आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....
कुछ फूलों की
सूखी पंखुड़ियां
जो आज भी दोस्ती बन महकती हैं जहन में....
कुछ सदभावना सन्देश
जो दुआएं हैं अपनों की
ईश्वर के साए की तरह....
कुछ पीले पड़ चुके पन्ने
जो समेटे हैं
मोहब्बत की खूबसूरती....
कुछ तोहफे
जो बेशकीमती धरोहर हैं....
और भी बहुत कुछ,
शायद सभी कुछ है
दीवान के अन्दर....
कहाँ बदला है वक़्त ?
वक़्त तो ठहरा हुआ है
आज भी हर एहसास को
उतनी ही ताजगी से सम्हाले.....
कहाँ बदलता है स्थान ?
बदलते तो हम हैं
अपने ही रास्ते
फूलों की डगर से काँटों की ओर.....
सचमुच
बदलते तो हम हैं
अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....
पर
समेट लेते हैं
ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को
कुछ तहें बना कर
दीवान के अन्दर
और
बड़ते जाते हैं अकेले....
...... जाने क्यों ?
Comment
आदरणीय प्राची जी
पर
समेट लेते हैं
ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को
कुछ तहें बना कर
दीवान के अन्दर
और
बड़ते जाते हैं अकेले..अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
सचमुच सही कहाँ है आपने आदर. डॉ. प्राची जी-
बदलते तो हम हैं,अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....
पर,समेट लेते हैंज़िंदगी की ख़ूबसूरती को | बहुत अच्छी रचना बधाई
वो कुछ
गिनी चुनी निशानियाँ....
कुछ गुड्डे- गुडिया
जिनकी आँखों में
आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....
कुछ फूलों की
सूखी पंखुड़ियां
जो आज भी दोस्ती बन महकती हैं जहन में.
डॉ प्राची जी ..बहुत खूब कहा आपने सटीक और सत्य बहुत काम आता है ये हमारे जीवन में
वाह बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है आपने...
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