वक़्त (कुछ दोहे)
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प्राची जी
सादर, वक्त से सत्य तक सुन्दर दोहावली. तकनीक पर जानकार महानुभाव मार्गदर्शन दे ही रहे हैं. मुझ अज्ञानी का भी, मन की इच्छाओं को व्यक्त करने का, एक लघु प्रयास है.
दोहा छंद लिखने की, प्रथा चली घनघोर,
बैठ दोहा छंद लिखूं, जागा मन मे चोर.
सादर
बचपन में पढ़ा गया एक दोहा .....
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय.
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय.. संत कबीर
स्वागत है डॉ० प्राची !
आदरणीय अम्बरीश जी,
//आलस निद्रा डूब कर , जो परिहास उड़ाय l
२११ १२ २१ ११=12
२११ २ २ २१ ११=१३
आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय,
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
आदरणीया सीमा जी, आपको ये दोहा प्रयास सुन्दर लगा, इस हेतु आपका हार्दिक आभार
आदरणीय अम्बरीश जी,
आपका हार्दिक आभार , आपने मेरी दोहा रचना को इतना वक़्त दिया...
लेकिन एक शंका का निवारण जरूर कीजिये सर.
सुधार हेतु कुछ सुझाव .....
२२१
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