मैं पैदा ही हुआ हूँ दर्द को जीने के लिए
जैसे लहरें बनींहैं जाँकश सफीनेके लिए
मुझको क्या गिजा चाहिए जीने के लिए
तुम्हारा गम काफी है पूरे महीने के लिए
कुछ तो चाहिए दिलको गम दवा या दारु
इकअदद आब काफी नहींहै पीने के लिए
क्यूँ बढ़ालीहैं हमने अपनी सब ज़रुरीयात
बढ़ीहुई तंख्वाह चाहिए हर महीने के लिए
मैं भटकता हुआ दरिया हूँ समंदर है कहाँ
कोई ठहराव चाहिए तामीरेनगीने के लिए
अपनी जवानीसे लबरेज़ हुआजाता था वो
न सही शराबपे शबाबथा आब्गीनेके लिए
राज़ क्या गलतथी अपनी गुजारिश उनसे
दिलको चीरा है तो डोरभी दो सीनेके लिए
© राज़ नवादवी
१०.४३ रात्रिकाल, २६/०७/२०१२
जाँकश- जान लेने वाला; सफीना- नाँव; गिज़ा- भोजन; तामीरेनगीनना- नगीना की रचना के लिए; लबरेज़- लबालब भरा; आबगीना- शराब या गुलाबजल रखी जानी वाली शीशे की बहुत ही नाज़ुक बोतल; गुजारिश- प्रार्थना
Comment
शुक्रिया राजेश जी, आपकी दाद सर आँखों पे. बड़ी हौसलाअफजाई हुई. और खुशी कि आपको ग़ज़ल पसंद आई.
राज़ क्या गलतथी अपनी गुजारिश उनसे
दिलको चीरा है तो डोरभी दो सीनेके लिए
बेहतरीन ,लाजबाब ग़ज़ल इस अंतिम शेर के लिए तो विशेष दाद कबूल करें
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