अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
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तुम गरीब हो भूखे प्यासे
लिए कटोरा घूम रहे
दो टुकड़ों की खातिर दिल को
छलनी अपनी करवाते
इज्जत मान प्रतिष्ठा अपनी
घूँट -घूँट विष पी जाते
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
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पेट भरे -ना-हुयी पढाई
'आदिम मानव' जग हुयी हंसाई
पीछे पीछे उनके चलते
पिछड़े ही बस रह जाते हो
'वक्त' नहीं प्रिय पास तुम्हारे
'दो' रोटी में फंस जाते हो
'व्यथा' तुम्हारी 'जान' हरण को
जब हम 'जान' दांव पर लाते
सम्मुख 'राजा' भीड़ लिए हम
सहें तीर तो छुपते काहे ? तुम ना आते
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
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आन-बान सम्मान सभी कुछ
तुमको दांव लगाना होगा
कल जो जीना शान से यारों
छाती ठोंके भागे -दौड़े आना होगा
आओ चमको गरजो बरसो
तम-प्रकाश-द्युति -दमक दिखा दो
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित क्रांति कर के 'कुछ' पा लो
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फसल उगेगी 'मन' हरियाये
जोश जूनून बढेगा दूना
तब विकास धरती सज पाए
भ्रष्ट -चोर ना मिले नमूना
ये दीमक सा तुमको घेरे
'बाल्मीकि ' सम बाँध दिए
आओ 'भीड़' में बंधन तोड़े
'नूतन' विकास का ग्रन्थ लिखें
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित क्रांति कर के 'कुछ' पा लो
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रावण 'कनक' भवन यम बांधे
हम को है ललकार रहा
खून उबलता जन-गण का अब
खींच के लाओ समर भूमि 'आ'
अंतर्मन अब भरे हिलोरें जाग उठा
पुष्प जो झरर झरर झहराना
शिखर जो कल परचम लहराना
सीढ़ी एक -एक चढ़ ऊंचाई तो आना होगा
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित क्रांति कर के 'कुछ' पा लो
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर '५
कुल्लू यच पी
5.20-6.01 पूर्वाह्न
27.07.2012
Comment
आदर्णीय अशोक जी रचना कुछ गर्म जोशी दे सकी लिखना सार्थक रहा लेकिन जोर शोर से चल रहा आन्दोलन तो ठन्डे बसते में जाने लगा है राजनीति हावी ...भ्रमर ५
भ्रमर जी
सादर नमस्कार,
आन-बान सम्मान सभी कुछ
तुमको दांव लगाना होगा
कल जो जीना शान से यारों
छाती ठोंके भागे -दौड़े आना होगा
आओ चमको गरजो बरसो
तम-प्रकाश-द्युति -दमक दिखा दो
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित क्रांति कर के 'कुछ' पा लो
बहुत सुन्दर और जोश जगाती रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया रेखा जी आभार प्रोत्साहन हेतु ....बिना एक जुट हुए और सब कुछ दांव पर लगाए बिना कुछ बात बनने वाली नहीं ..सरकार ने तो धता बता दिया अब नए विकल्प को तलाश शुरू हो चुकी है
प्रिय अरुण अनन्त जी भ्रष्टाचारियों से मुक्ति पाने के लिए ये जोश देती रचना आप को भायी सुन ख़ुशी हुई आभार
आन-बान सम्मान सभी कुछ
तुमको दांव लगाना होगा
कल जो जीना शान से यारों
छाती ठोंके भागे -दौड़े आना होगा
आओ चमको गरजो बरसो
तम-प्रकाश-द्युति -दमक दिखा दो
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित क्रांति कर के 'कुछ' पा लो ,अति सुंदर कविता सुरेन्द्र जी ,मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
वाह आदरणीय भ्रमर जी वाह क्या बात कही है आपने , बहुत-२ बधाई स्वीकार करें.....
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