राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....
स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................
आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................
रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
Comment
सौरभ जी की गोद है, अम्बरीष के काँध |
प्राची अलबेला रहे , मुझको ढाढस बाँध ||
मुझको ढाढस बाँध, यही परिवार कहाये |
सुख दुख में दे साथ, वही रिश्ता कहलाये ||
लिखे हमेशा कलम ,आज आँसू ने लिख दी |
अपनों को आभार , बता दें प्रिय सौरभ जी ||
आज मन कुछ अधिक ही भावुक हो गया है, आदरणीअ अम्बरीष जी, अलबेला जी, प्राची जी तथा सौरभ जी का ह्र्दय से आभार. आज जाना कि कविता लिखी नहीं जाती, जन्म लेती है.
कौन भला दे पायगा, यहाँ समय को मात.
श्रावण तो है जा चुका, आँखों से बरसात..
आँखों में बरसात हो, मचलें हो अहसास |
कैसी श्रावन पूर्णिमा, कैसा श्रावण मास ?
सप्त लोक के पार है बहना का वह धाम.
भीगी आँखों से करें, पुनि-पुनि उसे प्रणाम..
धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी आदरणीय अरुण निगम जी को पुनः मेरा प्रणाम .....सादर
बहना है हृद में बसी, चुपचुप सी है दृष्टि
मन को मन से बालती, आँखों की यह वृष्टि
सादर आदरणीय अम्बरीषभाईजी. आदरणीय अरुण भाई की इस उच्च भावदशा को पुनः सादर प्रणाम कि हम सजल-सप्रवाह हो चले.. .
आदरणीय अरुण जी,
रक्षा बंधन पर बहना की स्मृतियों से सजी इस रचना के लिए हार्दिक नमन.
सादर
//आकुल मन नम आँख से, बहना आती याद ।
उस घर है वो जा बसी, जहाँ न हर्ष-विषाद ॥
जबसे बहना जा बसी जहाँ बसे घनश्याम |
राखी बिना कलाइयाँ तबसे उसके नाम ||
मेरे मन की मान थी, मन की ईश सुनाम |
मन से मन को तारती, बहना याद तमाम ||//
चली गयी जग छोड़ कर, कहाँ करें फ़रियाद.
एक हमारा दर्द है , आती बहना याद .. सादर
खो गयी जो बादलों में
मन वहीं अपना बसा है
गीत अति सुंदर तुम्हारा
दर्द ने इसको रचा है
आँख में आँसू भरे हैं
देख तेरी याद आयी
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई......सादर
आदरणीय अरुण निगम जी
आज रक्षाबंधन के उत्साहपूर्ण वातावरण में भी आपके गीत ने भीतर तक द्रवित कर दिया
रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................
________--अत्यंत पवित्र और मार्मिक गीत रचा आपने........सच ! कलाई सूनी हो, तो बहनों की याद मन भेद देती है........
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