For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

नेह तृप्त कुसुमित सुरभित सी 

बेसुध करती मादकता में,

कँवल कली के मध्य बिंधा सा

एक हठीला सा भँवरा है

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

मात पिता गुरु वचन रूप में

हर मौसम की तड़क धूप में ,

अंतर्मन तक शीतल करती

बरगद की ठंडी छैया है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

शूल दंश पग पग सहलाता

मंजिल तक है पुष्प बिछाता,

संस्कार और सत्यज्ञान का

कदम तले इक गालीचा है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

रिश्तों की कच्ची पगडंडी

से अविरल हर दिल तक जाती,

स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल

भावों की बहती सरिता है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

अहं क्रोध नफरत विरोध की

दावानल में झुलस झुलस कर,

लाश बने नाते-रिश्तों का

बन प्रतीक इक ठूँठ खड़ा है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 10:46am

आपका कहना बिलकुल ठीक है प्राची जी मात्राओं की दृष्टि से कोई  दोष नहीं है पर छंद बद्ध रचनाओं में गति के साथ-साथ यति कभी महत्त्व होता है इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि १६ मात्रा के बाद पन्क्ति पूरी होती हुई लगे  और अगला शब्द वाक्य का प्रारंभ लगे .............
 //लेखक की अपनी स्वतंत्र व निजी पसंद ही होती है, कि वो किस गेयता में अपनी रचना को लयबद्ध करना चाहता है,// सहमत हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 25, 2012 at 9:45am
आदरणीया सीमा जी,
आपको यह स्मृति गीत पसंद आया , ये मेरे लिए सुकून का कारण है, इस गीत के भावों व शब्दों को सराहने हेतु आपका हार्दिक आभार.
 
 १६*१६ मात्रा गणना पर आधारित इस गीत के मुखड़े की पंक्ति भी ३२ ही लेना उचित होगा, इसीलिये उपरोक्त पंक्ति को प्रस्तुत प्रारूप में लिया गया है.
वरन, जैसा आपने कहा है (काल-चक्र जीवन प्रांगण में ,स्मृतियों की एक बगिया है), बिलकुल यही पंक्ति पहले लिखी गयी थी.
 
बगिया को तुक की तरह जरूर लिया जा सकता था, पर यह लेखक की अपनी स्वतंत्र व निजी पसंद ही होती है, कि वो किस गेयता में अपनी रचना को लयबद्ध करना चाहता है, और संतुष्ट होता है.
 
आपने अपनी राय से अवगत कराया इस हेतु आपका हार्दिक आभार.
Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 8:52am

प्रिय प्राची जी

हमेशा की तरह कोमल और मधुर भावो से युक्त इस गीत के लिए आपको अनेकानेक बधाई सभी बंद बहुत साफ़,स्पष्ट और संप्रेषणीय लगे शब्दों का चयन भी  विषय और भावों के अनुरूप है 

रिश्तों की कच्ची पगडंडी

से अविरल हर दिल तक जाती,

स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल

भावों की बहती सरिता है,.......वाह बेहद खूबसूरत 

अब  वो अटकाव जो मुझे महसूस  हुआ  उनके विषय में भी  थोड़ी चर्चा करूंगी .....................
गीत के मुखड़े में प्रवाह बाधित है इसमे आप इस प्रकार परिवर्तन कर सकतीं हैं 

काल-चक्र जीवन प्रांगण में ,स्मृतियों की एक बगिया है /काल-चक्र जीवन प्रांगण को आप सामासिक पद की तरह प्रयुक्त कर सकतीं हैं 

 इसके अतिरिक्त यदि आप बगिया को तुक की तरह प्रयोग करतीं तो गीत में और अधिक निखार आ जाता 

बहरहाल एक भावप्रवण गीत के लिए  पुनः  बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:23pm

स्मृति सिंचित इस गीत को सराह उत्साहवर्धन करने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 12:46pm

//शूल दंश पग पग सहलाता

मंजिल तक है पुष्प बिछाता,

संस्कार और सत्यज्ञान का

कदम तले इक गालीचा है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

रिश्तों की कच्ची पगडंडी

से अविरल हर दिल तक जाती,

स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल

गंग यमुन सी इक सरिता है,

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....//

आदरेया डॉ० प्राची जी ! स्मतियों के इस अद्भुत संसार में भावनाओं की अनुभूति कराती हुई इस अभूतपूर्व रचना के लिए बधाई स्वीकारें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service