काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
नेह तृप्त कुसुमित सुरभित सी
बेसुध करती मादकता में,
कँवल कली के मध्य बिंधा सा
एक हठीला सा भँवरा है
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
मात पिता गुरु वचन रूप में
हर मौसम की तड़क धूप में ,
अंतर्मन तक शीतल करती
बरगद की ठंडी छैया है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
शूल दंश पग पग सहलाता
मंजिल तक है पुष्प बिछाता,
संस्कार और सत्यज्ञान का
कदम तले इक गालीचा है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
रिश्तों की कच्ची पगडंडी
से अविरल हर दिल तक जाती,
स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल
भावों की बहती सरिता है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
अहं क्रोध नफरत विरोध की
दावानल में झुलस झुलस कर,
लाश बने नाते-रिश्तों का
बन प्रतीक इक ठूँठ खड़ा है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
Comment
आपका कहना बिलकुल ठीक है प्राची जी मात्राओं की दृष्टि से कोई दोष नहीं है पर छंद बद्ध रचनाओं में गति के साथ-साथ यति कभी महत्त्व होता है इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि १६ मात्रा के बाद पन्क्ति पूरी होती हुई लगे और अगला शब्द वाक्य का प्रारंभ लगे .............
//लेखक की अपनी स्वतंत्र व निजी पसंद ही होती है, कि वो किस गेयता में अपनी रचना को लयबद्ध करना चाहता है,// सहमत हूँ
प्रिय प्राची जी
हमेशा की तरह कोमल और मधुर भावो से युक्त इस गीत के लिए आपको अनेकानेक बधाई सभी बंद बहुत साफ़,स्पष्ट और संप्रेषणीय लगे शब्दों का चयन भी विषय और भावों के अनुरूप है
रिश्तों की कच्ची पगडंडी
से अविरल हर दिल तक जाती,
स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल
भावों की बहती सरिता है,.......वाह बेहद खूबसूरत
अब वो अटकाव जो मुझे महसूस हुआ उनके विषय में भी थोड़ी चर्चा करूंगी .....................
गीत के मुखड़े में प्रवाह बाधित है इसमे आप इस प्रकार परिवर्तन कर सकतीं हैं
काल-चक्र जीवन प्रांगण में ,स्मृतियों की एक बगिया है /काल-चक्र जीवन प्रांगण को आप सामासिक पद की तरह प्रयुक्त कर सकतीं हैं
इसके अतिरिक्त यदि आप बगिया को तुक की तरह प्रयोग करतीं तो गीत में और अधिक निखार आ जाता
बहरहाल एक भावप्रवण गीत के लिए पुनः बधाई
स्मृति सिंचित इस गीत को सराह उत्साहवर्धन करने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी
//शूल दंश पग पग सहलाता
मंजिल तक है पुष्प बिछाता,
संस्कार और सत्यज्ञान का
कदम तले इक गालीचा है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
रिश्तों की कच्ची पगडंडी
से अविरल हर दिल तक जाती,
स्नेहसिक्त हो कलकल निर्मल
गंग यमुन सी इक सरिता है,
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....//
आदरेया डॉ० प्राची जी ! स्मतियों के इस अद्भुत संसार में भावनाओं की अनुभूति कराती हुई इस अभूतपूर्व रचना के लिए बधाई स्वीकारें !
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