"शहरीकरण"
संस्कृति
चीखती कराहती
बिलखती
अपने चिरंजीवी
होने के अभिशाप को लिए
नग्न पड़ी है
आधुनिकता के गुदगुदे बिस्तर पे
उसकी इज्ज़त तार तार करने वाले भेडिये
यत्र तत्र सर्वत्र घूम रहे हैं
कुटिल मानसिकता लिए
और बुद्धिजीवी कहते हैं
ये अत्याचार नहीं शहरीकरण है
आधुनिकता
आलमारी के कोने में रखे
पुराने कपडे
शर्मिंदा है खुद पर
काश हम पहले ही
फटे होते
तार तार होते
ओछे होते
बदन पे मुस्किल से आते
न ढँक पाते आन
तो हमें मिल रहा होता
आज सम्मान
इस आधुनिक समाज में
मेट्रो सिटी
जब प्रेम इतना बढे
के मर्यादाओं की जंजीरें तोड़ कर
घरों से निकल कर
वस्त्रों की घुटन से आज़ाद
उद्यानों की झुरमुट से निकल कर
सिनेमा हाल से बाहर निकल कर
सड़कों में चहुँ ओर पसर जाए
तब समझ लेना
आपका शहर
मेट्रो सिटी बन गया है
"कुत्ते "
सड़कों में कुत्ते भौंकते हैं
आवारा कुत्ते
लेकिन अब डर नहीं लगता है
हास्य जरुर पैदा होता है
उस आवाज से
लगता है मानो
दिल्ली की भड़ास
यहाँ निकल रही हो
और सरकार कह रही हो
भौंक ले और तेज़ भौंक
काटने का हुनर ही नहीं रहा अब
कुत्तों में
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर नमन
मेरे लेखन को आपकी सराहना मिली मन प्रसन्न और उत्साहित हो गया
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका ह्रदय से धन्यवाद सहित सादर आभार
आदरणीय रणवीर जी
आपको लेखन पसंद आया और आपने इसे अपना बेशकीमती समय दिया इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर
परम आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी आशीर्वाद स्वरुप प्रतिक्रिया पा कर मैं धन्य हो गया
ये अनुपम स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये शिष्य पर
आदरणीय उमाशंकर सर जी आपको ये क्षणिकाएं पसंद आई मेरा लेखन कर्म सफल हो गया
अपना ये स्नेह यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित आभार
//और बुद्धिजीवी कहते हैं
ये अत्याचार नहीं शहरीकरण है//
सुन्दर बिबों से सुसज्जित सभी क्षणिकाएं बहुत पसंद आयीं ......बहुत बहुत बधाई मित्र !
बहुत सुन्दर रचना है आपकी, ये आज की दुनिया का कड़वा सच है...
बहुत सुन्दर बिम्बों पर सधी रचनाएँ हुई हैं. व्यंग्य की भगार लगे भाव-शब्द प्रभावित करते हैं.
शाब्दिकता को थोड़ा संयमित विस्तार दिया जाय तो ऐसी रचनाओं की तासीर और भी तीखी होती है जो कि इस तरह की रचनाओं की आवश्यक मांग होती है. रचना ’शहरीकरण’ के संदर्भ यह बात खुल कर सामने आती है.
रचना ’कुत्ते’ के नेपथ्य भाव से बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ.
रचनाकर्म के लिये बहुत-बहुत बधाई व हार्दिक शुभेच्छाएँ.. .
"शहरीकरण" आधुनिकता मेट्रो सिटी "कुत्ते " चारो रचनाएँ उम्दा है
करारा व्यंग है मजेदार है आखरी कुत्ते ...ने हंसाया भी और आपका तेवर भी बताया
बहुत खूब संदीप जी
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