For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सपने कभी कभी सच भी होते हैं

आज़ादी
मेरे देश की आज़ादी
चीख रही थी
लाउड स्पीकर से
ऐ मेरे वतन के लोगो
ऐ मेरे प्यारे वतन
बहरे सुन रहे थे
गूंगे गुनगुना रहे थे
अंधे देख देख विश्मित हो रहे थे
लाल लाल शोलों से घिरा
एक दरख्त
कुछ लोग चढ़े हुए
हरे नीले पीले लाल
हाँ लाल लाल लाल
उस काले से दरख्त पे
सुर्ख लाल पत्ते
जिनकी नोंको से टपक रही थी
शराब सी शबनम
टप टप- टप टप
घेरा डाले बैठे से
बाज़ चील कौए
डाल डाल शातिर उल्लू
झूलों में झूलती थी
अर्धनग्न अप्सराएं
चारों और परिकृमा करती थी
पश्चिमी धुन गुनगुनाती थी
संग दिव्य अधनंगे पुरुषों के साथ
वहीँ झूलती थी लाशें
गले में फंदे डाले
वृद्ध लाशें
घूँघट लिए
शर्म समेटे
बिलखती चीखती
यातनाएं सहती
भेडिये उस दरख्त को
दे रहे थे पानी
हर ओर
सन्नाटा सा पसरा था
ढेर लगे थे
जिन्दा लाशों के
एहसासों के तार तार
कपड़ों को लपेटे
नंग धुडंग फिर रहीं थीं लाशें
हर ओर हर ओर
काला दरख्त
लाल सुर्ख पत्ते
खिल खिल उठते
भयावह तीक्ष्ण स्वरों के उपरान्त
निकली दर्दनाक कराहों से
बिलबिलाते क्रंदन से
भेडिये उड़ेलते थे उनमे
पानी पानी पानी
और आज़ादी फिर भी
चीखती रही
लाउड स्पीकर से
ऐ मेरे वतन के लोगो

ऐ मेरे प्यारे वतन
और उस दरख्त की साखें
फैलती थी विस्तृत
आसमान पे
उसे सींचने वाले
उंचाई पे थे
उसपे चढ़े हुए
गूंगे बहरे अंधे
लुत्फ़ लेते
भयानक तीक्ष्ण स्वरों से
बिखरी तितर बितर हुई
लाल माटी का
उस माटी से
भेडिये निकाल लाते
काले दरख्त को सींचने पानी
लाल पानी
खिल उठते इक बार फिर
पानी पड़ते ही
लाल सुर्ख पत्ते
काला दरख्त
और चीखती आज़ादी
आँख खुलते ही

पता चला मुझे
सपने कभी कभी सच भी होते हैं


संदीप पटेल "दीप"

Views: 391

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 1:13pm
आज की सच्चाई पर प्रहार करती रचना ---लाजबाब 
Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 11:49am

और आज़ादी फिर भी
चीखती रही
लाउड स्पीकर से
ऐ मेरे वतन के लोगो

ऐ मेरे प्यारे वतन
और उस दरख्त की साखें
फैलती थी विस्तृत
आसमान पे
उसे सींचने वाले
उंचाई पे थे 
उसपे चढ़े हुए
गूंगे बहरे अंधे
लुत्फ़ लेते
भयानक तीक्ष्ण स्वरों से,मार्मिक रचना किन्तु सत्य आदरणीय संदीप जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service