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भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां

क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां

आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ

दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां

इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ

इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं
जितनी सुन्दर काम वाली बाइयां

'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां

-अलबेला खत्री

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Comment

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Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 10:59pm

हा हा हा
तो ये है लोटा ....
बाबा लोटानंद की जय !
सादर बागी जी..............हा हा हा ..मज़ा आया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2012 at 10:45pm

लोटा का आकर्षण होता ही ऐसा, समय पर लोटा ना मिले तो आदमी लौटता नहीं है लोट जाता है :-))))))))))))))))

Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 10:03pm

ये लोटा लोटा क्या है ?
ये लोटा लोटा ?
लोटा ?
_________सादर  महाप्रभु !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2012 at 9:59pm

ले लोटा.. .  आय-हाय.. हाय-हाय ! हा हा हा हा...   बाग़ी भाई के जवाब नइखे.. (बाग़ी भाई का ज़वाब नहीं है)

इस लोटे के आकर्षण में खिंचा चला आया.. . :-))))))))

Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 8:58pm

आदरणीय बागी भाईजी,
प्रणाम............ये "ले लोटा " क्या  है जी ?
___आपकी सराहना  सर आँखों पर..........लेकिन लोटा वाला रहस्य  क्या  है ?

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2012 at 8:55pm

'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां......

ले लोटा, गहरी बात कहने बाद कह दिए कि "ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइया" वैसे ही जैसे टी वी वाले सब कुछ दिखाने के बाद Disclaimer  लिख देते है, अच्छी ग़ज़ल पर मुबारकवाद कुबूल करें |

Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 7:13pm

धन्यवाद भाई सतीश जी.......
शुक्रिया
सादर

Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 11:19am

सादर आदरणीय लड़ी वाला जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2012 at 10:57am

"वैसे कहना नहीं किसी से, .आपकी  रूचि,आपकी  सतत ऊर्जा और  आपका समर्पण  स्तुत्य है"


वाह ; वाह ...जय हो आपकी जय हो .......भाईजी, गजब करते हो 
कहना मत किसी से, कहकर सार्वजानिक करते हो, 
और वह  भी ओबीओ के माध्यम से जो सर्व लोकप्रिय माद्यम हो चूका है ..... 
यह मै नहीं, जोहरी बाज़ार,जयपुर की पीपली बोल रही है, चाहो तो जयपुर के ही 
संदीप कुमार पटेल जी से पूछलों प्रभु 
सादर  
Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 9:13am

धन्यवाद.........
बहुत बहुत शुक्रिया

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