"अलविदा दोस्तों "
मिल जाते हैं
लोग
बहुत से लोग
रहगुजर पे
कुछ बेगाने
अपने से
और कुछ अपने
बेगाने से
सवाल उठने लगते हैं
जहन में
बार- बार
कौन है यार ?????
तन्हाई क्या है
अकेलापन
या जुदाई का एहसास
यार से
किसी अपने से
ये अपना कैसे हो गया ???
और ये बेगाना कैसे ???
अच्छा है
बुरा है
अपना है
बेगाना तो बेगाना है
कुछ पैदाइशी अपने हैं
माँ, बाप, भाई, बहन,
रिश्तेदार
और कुछ अपने हुए
पर कैसे ?????
मन मिला तो मेला
लेकिन ये मन मिला कैसे ???
मेरे अपने गुरुजन
मेरे अपने दोस्त
मेरे अपने रिश्तेदार
इनसे मन मिला है मेरा
इनके बिना
अकेलापन है
तन्हाई है
दुःख है
मन ????
बड़ा जटिल है
समझ पाना इसे
क्या है ये मन ??
क्या यही सोच है ??
या सोच से चलता है मन ???
अपना कौन है ???
जिनके जाने का दर्द हो
जिनके आने से हर्ष हो
जिनके रूठने पर व्यथित हो मन
जिनके मानते ही झूम उठे मन
जिसे जरूरत न हो
आडम्बरों की
जो जानता हो
प्रेम के अव्यक्त स्वरूप को
जो मन में विद्यमान है
अथाह है
वही न
वही है अपना
जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????
अलविदा दोस्तों
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी रचना पढ़ी और उसे सराहा भी उत्साह दोगुना हो गया
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
आपने सच कहा बागी सर जी की बात एकदम सच है कभी अलविदा न कहना
//जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????//
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई मित्र संदीप जी !
आदरणीय बागी जी ने सच ही कहा है............कभी अलविदा ना कहना .....| सस्नेह
सच कहा आपने आदरणीय
शायद इसीलिए बस अलविदा से काम चला लेता है वो
कविता पढ़ी आपने अपना कीमिया समय दिया
इसके लिए आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये
जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????
अलविदा दोस्तों
नहीं भाई जाने पर जों होता है वह दिखता नहीं है वह शायद आगमन पर हुए स्वागत से भी अधिक कुछ है.
आदरणीया रेखा जी सादर नमन
आपको मेरे ये चंद शब्द पसंद आये और मुझे आपकी सराहना मिली
आपके ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????,अति सुंदर अभिव्यक्ति संदीप जी
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर नमन
आपको मेरी कविता के भाव पसंद आये और आपकी सराहना मुझे मिली
ये स्नेह और आशीष यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणामं
आपकी प्रतिक्रया स्वरुप आशीर्वाद पा कर मैं धन्य हो गया
मुझ पर ये स्नेह और आशीष सदैव बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
आदरणीय गणेश सर जी सादर नमन
आप सभी का इतना स्नेह और आशीष मिलना सौभाग्य की बात है
और अपनों से अलविदा कहने में भी बड़ा क्षोभ होता है
जिस स्थान में नेह और सम्मान दोनों ही मिल रहे हों
वहाँ से अलविदा कहने का सवाल ही नहीं उठता है
और यदि कभी ऐसा दिन आये तो बड़ा दुखद और कष्टकारी होगा
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपने कविता के वास्तविक सौन्दर्य को अपनी अनमोल प्रतिक्रया देकर दूना कर दिया है
आपका ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
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