For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा: मोहनभोग -संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा: मोहनभोग
-संजीव वर्मा 'सलिल'
*
*
'हे प्रभु! क्षमा करना, आज मैं आपके लिये भोग नहीं ला पाया. मजबूरी में खाली हाथों पूजा करना पड़ रही है.

' किसी भक्त का कातर स्वर सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा.

अरे! ये तो वही सज्जन हैं जिन्होंने सवेरे मेरे साथ ही मिष्ठान्न भंडार से भोग के लिये मिठाई ली थी फिर...?

मुझसे न रहा गया, पूछ बैठा: ''भाई जी! आज सवेरे हमने साथ-साथ ही भगवान के भोग के लिये मिष्ठान्न लिया था न? फिर आप खाली हाथ कैसे? वह मिठाई क्या हुई?''

'क्या बताऊँ?, आपके बाद मिष्ठान्न के पैसे देकर मंदिर की ओर आ ही रहा था कि देखा एक दूकान में भीड़ लगी है और लोग एक छोटे से बच्चे को बुरी तरह मार रहे हैं. मैंने रुककर कारण पूछा तो पता चला कि वह एक डबलरोटी चुराकर भाग रहा था. लोगों को रोककर बच्चे को चुप किया और प्यार से पूछा तो उसने कहा कि उसने सच ही डबलरोटी बिना पैसे दिये ले ली थी... रुपये-पैसों को उसने हाथ नहीं लगाया क्योंकि वह चोर नहीं है... मजबूरी में डबल रोटी इसलिए लेना पड़ा कि मजदूर पिता तीन दिन से बुखार के कारण काम पर नहीं जा सके... घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा... आज माँ बीमार पिता और छोटी बहन को घर में छोड़कर काम पर गयी कि शाम को खाने के लिये कुछ ला सके.... छोटी बहिन रो-रोकर जान दिये दे रही थी... सबसे मदद की गुहार की... किसी ने कोई सहायता नहीं की तो मजबूरी में डबलरोटी...' और वह फिर रोने लगा...

'मैं सारी स्थिति समझ गया... एक निर्धन असहाय भूख के मारे की मदद न कर सकनेवाले ईमानदारी के ठेकेदार बनकर दंड दे रहे थे.

मैंने दुकानदार को पैसे देकर बच्चे को डबलरोटी खरीदवाई और वह मिठाई का डिब्बा भी उसे ही देकर घर भेज दिया.

मंदिर बंद होने का समय होने के कारण दुबारा भोग के लिये मिष्ठान्न नहीं ले सका और आप-धापी में सीधे मंदिर आ गया, इस कारण मोहन को भोग नहीं लगा पा रहा.'

''नहीं मेरे भाई!, हम सब तो मोहन की पाषाण प्रतिमा को ही पूजते रह गए... वास्तव में मोहन के जीवंत विग्रह को तो आपने ही भोग लगाया है.'' मेरे मुँह से निकला...

प्रभु की मूर्ति पर दृष्टि पडी तो देखा वे मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं.

**************************

Views: 283

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 14, 2010 at 7:44pm
धन्यवाद.
Comment by आशीष यादव on October 14, 2010 at 3:51pm
bahut sundar prerak prasang.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 8:52pm
बिलकुल सत्य है, मोहन तो जन जन मे बसे है बस देखने वाले नैन चाहिये, बहुत ही ज्ञानवर्धक लघुकथा |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service