बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०१
चांदनी रात थी,
उजला आकाश था..
नदियों में लहरे,
और नीला प्रकाश था..
मछलियों की वो गुनगुनाहट,
और हर-हराती लहरे..
क्या खूब नज़ारा,
मन क्यों न अब उसपर ठहरे..
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०२
फिर शांत हुई लहरे,
मेरा चेहरा सामने आया..
जैसे नदियों ने मुझे,
गोद में था बैठाया..
सुकून इतना मिला,
जैसे पा लिया ईश्वर को.
जैसे मिल गई हो छत,
मेरे सूने इस सर को...
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०३
सूरज की किरणे जब निकली,
तब पलकों को झपकाया.
जैसे लगा मुझे, मैं स्वर्ग से घूम कर आया..
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०४
Comment
रेखा जी.. तहे दिल से आपको धन्यवाद्
राजेश कुमारी जी....
सुक्रिया आपका
सूरज की किरणे जब निकली,
तब पलकों को झपकाया.
जैसे लगा मुझे, मैं स्वर्ग से घूम कर आया..
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए.,खूबसूरत सपने प्रदीप जी ,बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना पर
मेरा चेहरा सामने आया..
जैसे नदियों ने मुझे,
गोद में था बैठाया..
सुकून इतना मिला,
जैसे पा लिया ईश्वर को.
जैसे मिल गई हो छत,
मेरे सूने इस सर को.---सुन्दर पंक्तियाँ
यह पढ़कर ख़ुशी हुई की आपको सपने में सकून मिला जैसे इश्वर पा लिए इस सुन्दर सुनहरे अहसास की लिए हार्दिक बधाई |
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