For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pradeep Kumar Kesarwani
  • Male
  • Allahabad, Uttar Pradesh
  • India
Share on Facebook MySpace

Pradeep Kumar Kesarwani's Friends

  • deepti sharma
  • Rekha Joshi
  • Sonam Saini
  • MAHIMA SHREE
  • Yogyata Mishra
  • आशीष यादव
 

Pradeep Kumar Kesarwani's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Allahabad, Uttar pradesh
Native Place
Lucknow
Profession
MBA
About me
A boy, that want to see, every people over the world Should be happy...

Pradeep Kumar Kesarwani's Photos

  • Add Photos
  • View All

Pradeep Kumar Kesarwani's Blog

एक ख्वाहिश जलने की

कभी चिराग बनकर जला

कभी आग बनकर जला

जली हो चाहे किसी की भी खुशियाँ 

लेकिन मैं ही दाग बनकर जला...01

.

सुलग-२ जल रहा जिस्म ये मेरा..

तपते आशियाने ही रहा अब मेरा डेरा..

कभी किसी ने तरस खाकर छोड़ा,

तो कभी किसी के लिए हिसाब बनकर जला....02

.

धोका देकर मुझे…

Continue

Posted on September 2, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

"मेरे सपने"

बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०१

चांदनी रात थी,

उजला आकाश था..

नदियों में लहरे,

और नीला प्रकाश था..

मछलियों की वो गुनगुनाहट,

और हर-हराती लहरे..

क्या खूब नज़ारा,

मन क्यों न अब उसपर ठहरे..



बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०२

फिर शांत हुई लहरे,

मेरा चेहरा सामने आया..

जैसे
नदियों ने मुझे,

गोद में था बैठाया..

सुकून  इतना मिला,

जैसे पा लिया ईश्वर को.

जैसे मिल…

Continue

Posted on August 31, 2012 at 11:00am — 5 Comments

अब आ भी जा

हर मोड़ हर किनारे.

जब दिल धडके, तुमको पुकारे.
सुनकर अरदास मेरी, तू आ भी जा,
तू कदम, अब तू ही सहारे..
आरजू अब बस मिलने की..
बाहों में तेरे पिघलने की.
चोट खाए दिल को, 
हाथो से सिलने की..
तरसे ये आंखे देखने को नज़ारे.
तू कदम, अब तू ही सहारे..
सुनकर अरदास मेरी, तू आ भी जा,
बिना चाँद अब क्या करे…
Continue

Posted on August 19, 2012 at 1:41pm

मासूम सी एक सूरत,

मासूम सी एक सूरत,

बन गई वो मेरी जरुरत,

होता है कुछ देखकर उसे,

क्या कहू वो है कितनी खूबसूरत....

........

अब सब कुछ फ़साना एक लगता है,

उसका दूर जाना भी, पास आना लगता है,

सोचा न था, एक दौर ऐसा आएगा,

जब ये दिल, किसी को चाहेगा,

फिर भी चुप रहेगी ये जुबाँ, ऐसी कोशिस है,

आँखों से समझे वो प्यार, ये साजिस है,

अब समझाना है उसको इन आँखों की भाषा,

वो होगी मेरे रूबरू,है इस दिल को आशा,

पा लेंगे उसको खुदपर विस्वास है,

मिलेगी वो, क्योकि वो…

Continue

Posted on July 5, 2012 at 11:30pm — 3 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Dec 16

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service