(१)
कभी फुर्सत में चले आना,हँस के जी लेंगे
ज़िक्र उनका न करेंगे होंठ सी लेंगे
दिल तो आखिर दिल है उदास भी हो सकता है
दर्द गर बढ़ भी गया दिल का,जाम पी लेंगे
(२)
हम मुहब्बत के पुजारी हैं इश्क करते हैं
ग़म के सहरा पे चलनें का दम भरते है
दर्द का रिश्ता तो इस दिल पुराना है दोस्त
हम तो तन्हाई में जीने का हुनर रखते हैं
(3)
बेगुनाही का सबूत हमसे न मांगो यारो
हमने तो चाहा,खता इतनी सी थी मेरी
हम तो ग़म के प्याले भी हँसके पीते रहे
उनको ऐतवार न था,गलती थी क्या मेरी
दीपक 'कुल्लुवी'
31 अगस्त 2012
Comment
पूछो न कोई मुझसे क्यों पीता शराब हूँ-2
हम मुहब्बत के पुजारी हैं इश्क करते हैं
ग़म के सहरा पे चलनें का दम भरते है
दर्द का रिश्ता तो इस दिल पुराना है दोस्त
हम तो तन्हाई में जीने का हुनर रखते हैं,खूबसूरत पंक्तियाँ आदरणीय दीपक जी ,बधाई
बेगुनाही का सबूत हमसे न मांगो यारो
हमने तो चाहा,खता इतनी सी थी मेरी
हम तो ग़म के प्याले भी हँसके पीते रहे
उनको ऐतवार न था,गलती थी क्या मेरी-----वाह बहुत बेहतरीन पंक्तियाँ ---सुन्दर रचना
dhanyabad laxman ji....
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