जिसमे राष्ट्रिय मान भी हो!
दूजों के प्रति सम्मान भी हो!
अभिमान नही किंचित मन में,
पर दृढ़मय स्वाभिमान भी हो!
वाणी से केवल सत्य कहे!
जो सत्य हेतु हर कष्ट सहे!
निर्बल का जो बल बन जाए!
परदुख से जिसके नैन बहें!
उस अदृश्य को ही मैंने, मन समर्पित कर दिया है!
हाँ वही मेरी प्रिया है, हाँ वही मेरी प्रिया है!
जो अत्याचार विरोधी हो!
अन्याय-राह अवरोधी हो!
पथभ्रष्ट जनों की खातिर तो,
सत्पथ-दायक सम्बोधी हो!
जो धीर रहे गंभीर रहे!
जीवन रण में तो वीर रहे!
निज हेतु भले कुछ शेष नही,
पर याचक हेतु अमीर रहे!
तन में बेशक चंचलता हो!
पर मन में बृहद अटलता हो!
हो लाख निराशा पर खुद से,
विश्वास न जिसका गलता हो!
उस सत्व-सुंदरी ने ही, मन का हरण कर लिया है!
हाँ वही मेरी प्रिया है, हाँ वही मेरी प्रिया है!
कुछ राह कठिन जब आ जाए!
औ’ मेरा मन घबरा जाए!
उसका सहयोग हो ऐसा कि
हर मुश्किल सरल करा जाए!
सुख-दुःख कोई भी रंग रहे!
प्रतिक्षण-प्रतिपल वो संग रहे!
कैसे भी क्षण हो जीवन में,
बनकर के मेरा अंग रहे!
बसते हों जिसमे ये गुण, वो राधा वही सिया है!
औ’ वही मेरी प्रिया है, हाँ वही मेरी प्रिया है!
- पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
शुक्रिया भाई.........
बहुत-बहुत धन्यवाद प्राची जी..बस यूं ही थोड़ी बहुत कलम चला लेते हैं!
शुक्रिया सौरभ जी.....
धनयवाद जी......इस विशिष्टि की प्रेमिका मिलना बेशक कठिनतम है, पर हमेशा सौ फीसदी की आशा करनी चाहिए, क्योंकि तभी सत्तर-अस्सी फीसदी भी प्राप्त होगा ! पुनः धन्यवाद!
रचना हेतु बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
सुख-दुःख कोई भी रंग रहे!
प्रतिक्षण-प्रतिपल वो संग रहे!
कैसे भी क्षण हो जीवन में,
बनकर के मेरा अंग रहे!
बसते हों जिसमे ये गुण, वो राधा वही सिया है!
औ’ वही मेरी प्रिया है, हाँ वही मेरी प्रिया है!
जो अत्याचार विरोधी हो!
अन्याय-राह अवरोधी हो!
पथभ्रष्ट जनों की खातिर तो,
सत्पथ-दायक सम्बोधी हो!
पियूष जी, जिस विशिष्टि की प्रेमिका चाहिए वो आज के समय में मिलना जरा कठिन है :-) थोडा बहुत निगोसियेसन कीजिये तो सम्भावना अत्यधिक प्रवलित है हा हा हा ...
बहुत ही प्यारी रचना, बहुत बहुत बधाई |
धन्यवाद फूल सिंह जी........
पीयूष जी प्रणाम,
आपका बहुत ही सुंदर रचना बधाई ................
फूल सिंह
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