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प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,
मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll
**************************************************
आत्मान्वेषण है सहज, यही मुक्ति का द्वार,
बाहर खोजे जग मुआ, भीतर सच संसार ll2ll
**************************************************
पूरक रेचक साध कर, जो कुम्भक ठहराय ,
द्विजता तज अद्वैत की, सीढ़ी वो चढ़ जाय ll3ll
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वर्तमान ही सत्य है, शाश्वत इसके पाँव ,
नित्यवान के शीश पर, वक्त घनेरी छाँव ll4ll
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भूत बसे नहिं भविष जो, वर्तमान रम जाय ,
शुद्धोहं शुद्धो अहम् , राग वही मन गाय ll5ll
*************************************************
नित्यता और शुद्धता, जिस उर तह रम जाय,
निर्भेदी निर्मोह वह, ब्रह्म ज्ञान को पाय ll6ll
*************************************************
ब्रह्म ज्ञान अद्वैत है, हर कण एक समान ,
मुक्ति द्वार पहुँचा वही, जो साँचा विद्वान ll7ll
*************************************************

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2012 at 5:04pm

इस दोहावली में निहित कथ्य को सराहने हेतु हार्दिक आभार आ. अशोक कुमार रक्ताले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 1:10pm

प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,
मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll

बहुत सुन्दर संदेशात्मक दोहों के लिए बधाई स्वीकार करें आद. प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2012 at 10:16am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

भावों की गहनता, कथ्य की तार्किकता, व शिल्प की शुद्धता को आपकी कसौटी पर खरा उतरा देखना बहुत सुखकर है. इस प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2012 at 11:52pm

प्राण श्वसन आयाम से, पाता जाता त्राण
शब्द मौन के द्वार पर, पाता चिर निर्वाण.. . 

सघन-गहन हर भाव है, हर दोहा अति शुद्ध
उतना ही है कथ्य भी, दीखा हमें प्रबुद्ध .. .

बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ, डॉ. प्राची !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2012 at 10:53pm

कुमार गौरव जी यह दोहावली आपको पसंद आई इस हेतु आभारी हूँ .

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 10:46pm

सुन्दर दोहावली रची आपने आदरणीया प्राची जी....हार्दिक बधाई स्वीकारें.......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2012 at 8:05pm

इस दोहावली निहित भावार्थों को मान देने हेतु हार्दिक आभार आ. संदीप द्विवेदी जी 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 3, 2012 at 7:47pm

बहुत ही सुन्दर दोहावली आदरणीया! निश्चय ही सच्चा विद्वान ही मुक्ति के द्वार तक पहुँच सकता है! हार्दिक बधाई आपको!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2012 at 5:01pm

यह दोहावली आपको प्रभावित कर सकी, इस हेतु मैं आपकी आभारी हूँ आ. फूल सिंह जी .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2012 at 4:59pm

आपको यह रचना पसंद आयी, ये मेरे लिए ख़ुशी की बात है. सदभाव सम्प्रेषण हेतु हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी

कृपया ध्यान दे...

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