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राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३७ (मेरी बेटियों की जोड़ी को लिखा एक पत्र )

राज़ नवादवी: मेरी बेटियों की जोड़ी को एक पत्र

-------------------------------------------------- -----------

 

मेरी प्यारी बेटियों साशा और नाना,

 

मुझे आप दोनों की दुनियावी तकलीफों और दर्द के बारे में जानकार बहुत दुःख है. मुझे ऐसा लगता है कि घर से मेरा मुसलसल (लगातार) दूर रहना भी इनकी एक वजह है, मगर शायद फिलहाल मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी है कि इसमें जुदाई और फुर्कत (विरह) का साथ अभी और बाकी है.

 

मेरी दरख्वास्त है कि कभी अपना हौसला मत खोना क्यूंकि ज़िंदगी इक ऐसी तमसील (ड्रामा) है जो हैरत से भरी है और जिसमें कोई सुबह आपकी प्यारी गुड़िया बार्बी दफअतन (अचानक) जाग सकती है और आपको ज़िंदगी की तमाम खुशियों और मुसर्रत (हर्ष) से लबरेज़ कर सकती है, बशर्ते कि आपमें यकीन हो.

 

मैंने आपकी ज़िन्दगी की तकलीफों के बारे में बहुत सोचा है और एक जईफ (बूढ़े) होते जा रहे वालिद (पिता) की अपनी जवाँ और दराख्शिन्दां (प्रकाशवान) होती जा रही बेटिओं के लिए यही तजवीज़ (सलाह) है:

 

आप दोनों इस बात पे ख़ास तौर पे मुलाहिजा (गौर) फरमाएं कि आप दोनों को साथ ज़िंदगी गुज़ारने का मौक़ा देकर खुदा ने आप दोनों पे अपने रहमोकरम (कृपा और दया) का इज़हार किया है. जब आप दोनों अपनी तफूलियत (बचपन) से आगे बढ़कर जवाँ हो जाएँगी तो ये मुमकिन हैं कि वक़्त की मौज़ आप दोनों की ज़िंदगी की सम्त (दिशा) को जुदा कर दे. वैसे औकात (क्षणों) में जो अभी दूर मुस्तकबिल (भविष्य) के पर्दे में छुपे हैं, आप दोनों को अपनी तफूलियत की तमाम मासूम हरकतें याद आएंगी कि कैसे आप दोनों निहायत छोटी छोटी बातों पे झगड़ पड़ती थीं- चाहे वो आपके ड्रेस का मसला हो, चाहे आपके पित्ज्ज़ा का इक निवाला, या कि टीवी पे आपका पसंदीदा शो. और ये भी कि कैसे आप बिला किसी मुद्दे के तकरार पे बड़ी संजीदगी (गंभीरता) से आंसूं बहाती थीं- माज़ी (अतीत) की उन सभी बातों को सोचा कर आप को बहुत हंसी आयेगी और अफ़सोस भी होगा कि वो बातें अब यादों की गलियों में बहुत पीछे छूट गयी हैं और उन्हें अब फिर से नहीं जिया जा सकता- वो अब दर्द भरे याद का इक हिस्सा भर हैं.

 

आइन्दा (आगे) आनेवाली उस ज़िंदगी पे आप दोनों गौर से फ़िक्र फरमाएं और और हाल (वर्तमान) के हर लम्हे को शिद्दत (तीव्रता) और हसाफत (संवेदना) के साथ जिएँ, ये सोचकर कि यह ऊपर वाली की दी हुई नेमत है. याद करें कि कैसे आपके देहली स्कूल ट्रिप पे जाने पे नाना रोया करती हैं और साशा किस कदर नाना की किसी बजा ज़रुरत के लिए पुरज़ोर वकालत करती हैं.

 

दुआ है कि आप दोनो दो ऐसी बहनें बनें जिनका सारी दुनिया में ता क़यामत ज़िक्र हो ताकि अगर मैं कब्रनशीं भी रहूँ तो फख्र से मेरा सीना चौड़ा हो जाए. मेरी बातों का यकीं करो क्यूंकि मैं और आप दोनों जुदा नहीं!

 

मेरी दुआएं हमेशा आपदोनों के साथ हैं.

 

आपका पिता

 

राज़ नवादवी.

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© राज़ नवादवी

बैंगलोर, ०५.३९ संध्याकाल, शनिवार, ०८/०९/२०१२

  

 

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Comment by राज़ नवादवी on September 10, 2012 at 10:00pm

बहुत खूब. बहूत खूब.

'तन्हाई में खुद से बाते करते थक गए थे हम आज छत से गुजरते हुए इक बादल के टुकड़े को पकड़ लिया खुद भी रोये उसे भी रुला दिया' आपके बयाँ में बड़ी सादगी और सच्चाई है. बहुत सुकून मिला पढ़कर, तहेदिल से  शुक्रिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 10, 2012 at 9:28pm

इस भरी दुनिया में तनहा अपनी बात कहे जाता हूँ, जो इरशाद कहते हैं, तो बहुत खूब और जो न भी करें, तो इक तन्हाई सुने जाता हूँ! 

vaah वाह बहुत खूब ----एक शेर हम भी कहें ----तन्हाई में खुद से बाते करते थक गए थे हम आज छत से गुजरते हुए इक बादल के टुकड़े को पकड़ लिया खुद भी रोये उसे भी रुला दिया |

Comment by राज़ नवादवी on September 10, 2012 at 9:13pm

शुक्रिया आपका राजेश जी, आपके पढ़ने और लाइक करने का. इस भरी दुनिया में तनहा अपनी बात कहे जाता हूँ, जो इरशाद कहते हैं, तो बहुत खूब और जो न भी करें, तो इक तन्हाई सुने जाता हूँ! 

आपसबों का 

राज़ नवादवी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 10, 2012 at 8:39am

बहुत भाव विभोर कर दिया आपके इस पत्र ने हर माता पिता आपके इस पत्र की संवित्ति  को दिल से समझेगा बहुत बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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