इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर
मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर
अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला
सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर
'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा
जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! हार्दिक धन्यवाद आदरणीय .....
आप जैसे विद्वान की कलम से इस ग़ज़ल की कहन की तारीफ़ पाकर यह मेहनत सफल हुई !
आदरणीय आपकी ग़ज़ल की कहन तो माशाल्लाह सीधे दिल में उतर जाने वाली है. जैसे
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर
वाह वाह !
स्वागत है आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी. आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हो गया है ....बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद मित्रवर |
इस शेअर व ग़ज़ल को पसंद करने व सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी ! सादर
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
वाह वाह बहुत खूब ......दाद कबूलिये|
वाह वाह क्या बात है अम्बरीश जी बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल करें
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
जबस्दस्त शेर
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