एक राष्ट्र एक टोली, एक भाव एक बोली,
हिंदी से ही हो सकेगी, आप जान जाइए |
भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,
शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |
पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,
हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |
भारती की कामना है, शत्रु को जो थामना है,
भाई मेरे बंधु मेरे, हिंदी को बचाइए ||
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पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,
हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |
भारती की कामना है, शत्रु को जो थामना है,
भाई मेरे बंधु मेरे, हिंदी को बचाइए ||
सुन्दर शब्दों में यथार्थ को दिखाती रचना कुमार साब !
आदरणीय मित्र संदीप पटेल जी......सराहना के लिए आपका आभार........आपने जो पंक्तियाँ दी हैं बिलकुल वो भी सही बैठतीं हैं.....धन्यवाद.....
आदरणीय अजीतेंदु जी सादर
आपकी घनाक्षरी कथ्य और शिल्प की दृष्टि से बहुत उत्तम है
किन्तु अंत में जैसा की आदरणीय सौरभ सर ने कहा
कमजोर हो रही है
उस पर ध्यान देना परम आवश्यक है
काम धाम में भी आप हिंदी अपनाइए
यदि ऐसा कहा जाये तो कैसा रहे
सादर
आदरणीया सीमा जी........प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है.........आभार....
आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी.........खुले दिल से की गई सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......आपका स्नेह और आपकी सीख तो सदैव मार्गदर्शन करती है...आभार..........
कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से सुगढ़ घनाक्षरी के लिए बधाई कुमार गौरव जी
प्रिय कुमार गौरव जी , बेहतर शिल्प से सुसज्जित सुन्दर घनाक्षरी के लिए हार्दिक बधाई मित्र !
जैसा कि आदरणीय सौरभ जी ने कहा है कथ्य में बारीकी से थोड़ा सा सुधार करके इसे सोने से कुंदन बनाया जा सकता है ! सस्नेह
आदरणीय अलबेला भैया.......आपका प्यार सर-आँखों पर.......धन्यवाद......
आदरणीया राजेश जी.....सराहना हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......आपलोगों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.....इसी का नाम तो ओ बी ओ है.........एक बार पुनः आभार....
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