For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
हो निराश क्यों विस्मित मन, तक आशा की यह डोर रहे?
*
मैं खुद बेबस पंछी हूँ,
नाज़ुक पर, कैद सलाखों में,
आखिर क्या विश्वास जगा,
पाऊँगी बेबस आँखों में ?
सपने थे जिन आँखों में, क्यों आँसू अब उन कोर रहे ?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
कण्ट चुभन, हैं जख्मी तन,
मन भी होते घायल क्षण क्षण,
खुशबू थी जिन कलियों में,
क्यों बरसी उन पर घोर अगन ?
बदरी तम की छट जाए, कैसे उजली हर भोर रहे?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
जिनको छूने हैं तारे,
जिनकी मंजिल है यह अम्बर,
उढने से पहले ही क्यों,
विच्छिन्न हुए हैं उनके पर?
नेहाँचल में झट ढक लूँ, जो आज हथेली छोर रहे,
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
अरमानों के पंछी की,
कहो कैसे उर्ध्व गति उभरे?
भ्रष्ट व्यवस्था के हाथों,
कैसे कोई जीवन सँवरे?
महिषासुर मर्दन कर दूँ, क्यों रक्त में एक हिलोर रहे?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?

Views: 738

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 6, 2012 at 12:21pm

आपका हार्दिक स्वागत है !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2012 at 11:58am

आदरणीय अम्बरीश जी, इस रचना के भावों को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ, इससे भावसम्प्रेषण को संबल मिला है. हार्दिक आभार.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 6, 2012 at 11:26am

डॉ० प्राची जी,  मन के भावों को उद्घाटित करती हुई इस भावपूर्ण रचना के लिए सम्पूर्ण हृदय से बधाई स्वीकार करें !  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 25, 2012 at 7:52pm

इन शब्द भावों को सराहने हेतु आपका आभार आ. सतीश अग्निहोत्री जी 

Comment by Satish Agnihotri on September 25, 2012 at 4:22pm
अरमानों के पंछी की,
कहो कैसे उर्ध्व गति उभरे?
भ्रष्ट व्यवस्था के हाथों,
कैसे कोई जीवन सँवरे?.............Bahut khub

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 19, 2012 at 12:29pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, शब्द विशेष को सिंगल कोट में रखने का अर्थ मुझे मालूम नहीं था, इससे अवगत कराने हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2012 at 9:41pm

डॉ. प्राची, कविताओं में इस तरह से किसी शब्द को प्रस्तुत करने का अर्थ उस शब्द के विशेष अर्थ की ओर इंगित करना होता है. चूँकि उस शब्द का ’वह’ अर्थ पाठकों की समझ से निकल सकता है अतः रचनाकार उसे सिंगल कोट में रखता है. अन्यथा सामान्य परिस्थितियों में ऐसा अमूमन नहीं किया जाता.

पुनः बधाइयाँ व हार्दिक शुभकामनाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 15, 2012 at 8:42pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

सादर नमस्कार!
भावों की इस अभिव्यक्ति को कथ्य व शिल्प में आपके द्वारा सुगढ़ता का विशेषण मिलना अभिभूत कर रहा है. इस हेतु हार्दिक आभार.
 'तक' को विशेष रूप से इसलिए लिखा, क्योंकि मैं ताकने  के भाव और निगाहों की अपेक्षा को  emphasize करना चाहती थी, मुझे लगा कहीं ताक को तक लिखने के कारण इसको उच्चारित करने में, जल्दी से न बोल जाएं . मैं इस शब्द पर उच्चारण करते समय जोर देना चाहती थी.
क्या इस तरह लिखा जाना गलत है? कृपया बताएं . सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2012 at 7:35pm

इस विशिष्ट रचना के लिये हार्दिक बधाई, डॉ. प्राची. जितना ही सुन्दर प्रयास उतना ही संतुष्टिदायी परिणाम. रचना में प्रतीत होती विवशता अत्यंत ही सुगढ़ तरीके से उभरी है.

शुभ-शुभ..

कृपया बताइयेगा कि हो निराश क्यों विस्मित मन, 'तक' आशा की यह डोर रहे  में तक  को विशेष रूप से सूचित क्यों किया गया है ?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 9:38pm

आदरणीय गणेश बागी जी आपके सराहनात्मक शब्द हमेशा शाबाशी देते , हौसला बढ़ाते से महसूस होते हैं... इन अन्तः उद्गारों युक्त अभिव्यक्ति को सराहने हेतु हार्दिक आभार. सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service