1.गुरु ज्ञान बाँटते रहे, ले सके वही लेत,
भभूत समझे तो लगे, वर्ना वह तो रेत |
2.अमल करे तबही बढे, गुरु सबके हीसाथ,
करम सेही भाग्य बढे, भाग्य उसीके हाथ |
3. नेता भाषण में कहें,जाति का नहीं भेद,
जो फोटू दिखलाय दो, तुरत करेंगे खेद |
4. भेद गरीब अमीर का , नहीं करे करतार,
Comment
गुरु ज्ञान दोहे पसंद करने पर आपका शुक्रिया श्री फूल सिंहजी
लक्ष्मण जी.......प्रणाम
गुरु के महत्त्व को आपने बखूबी समझाया है.....बहुत ही सुंदर....
फूल सिंह
धरती बिन क्या उग सके, सोचो तो सरकार ? आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
//जमींन बिना न उग सके, सोंचो तो सरकार | //
धरती बिन क्या उग सके, सोचो तो सरकार ?
मार्ग दर्शन हेतु हार्दिक आभार अदार्निय सौरभ पाण्डेय जी, जगण (लघु गुरु लघु) पर अभी पकड़ कम है |
आपका प्रयास बेहतर है, लक्ष्मणजी. किन्तु, छंद शिल्प सतत प्रयास और अध्ययन मंगता है. आपका प्रयास भला लगता है. अध्ययन भी करते चलें. धीरे-धीरे गेयता के अनुसार आपके छंद सधने लगेंगे.
ध्यातव्य : जगण (लघु गुरु लघु) दोहा छंद के प्रथम और तृतीय चरण में त्याज्य है. जमींन शब्द इसी श्रेणी का है.
हार्दिक आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी, आप जैसे साहित्य और दोहा विशेषग्य से प्रमाण पत्र मिल गया, मेरा प्रयास सफल हो गया भाई जी
पुत्र से गर वंश चले, बेटी भी हकदार,
बिन जमींन नहि कुछ उगे, सोंचो तो सरकार |
बढ़िया प्रयास है लडिवाला जी, बधाई स्वीकारें |
दोहे पसंद कर होंसला बढ़ने हेतु हार्दिक आभार भाई श्री हरविंदर सिंह लबाना जी
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी, उत्साह एवेम सहयोग यूँ ही बनाये रखे |
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