काले किले का वो काला कलाल
भोलू के भाले में अटका वो बाल |
मामा के मोहल्ले का माल-पुआ
गुल्लू की गाली का गुलाब जामुन
पुणे के पानी को पीने को जाना
पान चबाकर वो पाना ले आना
गन को दिखाकर वो गाना तो गाना
गुनगुना के वो धुन गुनगुनाना
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला
लाला की लाल लुना लहराना
लाल किले में लीला को ले जाना
नाले के नल में नीला नहलाना
गीले में गाली से गिले मिटाना
गीली सी गोली को गल से गलाना
चाल चलकर चाल चलाना
चूल्हा जलाकर चूहा छकाना
बोर हो कर बोर खाना
बोरी बनकर बहार जाना
बहना से बहाना बनाना
banana खाके बात बनाना
जल को जला के जलजला लाना
बल को बढ़ा के बाल घुमाना
खोल के खिलौने के खाने को
कान खुजा कर खाना खाना |
तेल को तल के ताल बनाना
ताले के तले को ढोल बनाना |
मिठ्ठू को मट्ठे और मठरी खिलाना
मटके में मिटटी मटक कर मथना |
कूड़े में काड़ी , सड़क पर गाडी
मम्मी की साड़ी, भैया की लाड़ी
किताब क्यूँ फाड़ी, चद्दर क्यूँ नहीं झाड़ी |
घडी क्यों है अड़ी, मार क्यों है पड़ी
मौसंबी क्यों है सड़ी, मुसीबत हुई आ खड़ी |
Comment
हा हा हा हा ...बहुत मजेदार रचना है. इतना कन्फ्यूज्ड बचपन.
हा हा हा हा हा ....... लगता है अप लोगों को मज़ा तो ज़रूर आया
ये हुयी न बात सौरभ जी अब दुगना मुरब्बा बनेगा ........
इस पोस्ट से विदा लेती हूँ नहीं तो ये तिगुना हो जायेगा _/\_ :-))))))))))))
जी, समझ गया था. छेका व वृत्यानुप्रास का विशद उपयोग है.
न न सौरभ जी गंभीरता से शिल्प देखिये ज़बरदस्त अनुप्रास है इस पंक्ति में
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला
लाला की लाल लुना लहराना
लऽ.. इहेऽऽ.. सीमाजी लइकबुद्धि देखवली.. कुल्हि अक्षर गिने पर लग गयीं हैं.. :-))))))))))
जय होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
यानि आप अपनावाला बहिराये हैं ? वही कहे हम जे एतना पेंच काहें है..
अब अचार बनाना कैंसिल.. इसका मुरब्बा बनेगा
हा हा हा हा..
गणेश जी ऐसा नहीं की इसमे बिलकुल भी दिमाग नहीं लगाना है, ज़रा गिनिए तो कितने 'ल' हैं इसमे
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला
लाला की लाल लुना लहराना
लाल किले में लीला को ले जाना
नाले के नल में नीला नहलाना
गीले में गाली से गिले मिटाना
गीली सी गोली को गल से गलाना
चाल चलकर चाल चलाना
चूल्हा जलाकर चूहा छका
कुछ तो बात है रोहित भाई में ...............
सौरभ भईया रोहित भाई ने शुरू में ही लिख दिया था कि "कृपया अपना दिमाग साइड में रख दें " इसलिए मैं दिमाग को साइड में रख दिया था :-)))))))))
गणेशभाई, अच्छा किया आपने कि आप ’नारियल’ फोड़ के उसका गुद्दा निकाल लाये. रोहित भाई से कहिये वे इसका अब अचार डालें.
हा हा हा...................
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online