For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये तन्हाई अब काटने को दौड़ती है 
यह गुमनामी हमें अन्दर से  तोडती है 
हम उस कीड़े की तरह  हैं जो आबाद समंदर में होकर भी
एक सीपी में कैद है 
हम उस पेड़ की तरह हैं जो घने जंगल में 
होकर भी सूरज की रौशनी  से अब तक महफूज़  है 
हम उस कैद पंच्छी  की तरह हैं, 

 जो असमानों को छोड़ एक पिंजरे में कैद है ।

यह तन्हाई यह वीरानगी ये  भीड़ में  फैला सन्नाटा
ये  अकेलापन ये सूनापन ये  दर्द
लगता है यही हमारा साथी है 
यही हमारा दोस्त है , यही हमारा हमसफ़र है
कोई साथ रहे न रहे पर दर्द ने तन्हाई ने कभी हमे अकेला न छोड़ा
जब भी औरों ने हमसे रुख मोड़ा , तन्हाई ने हमे खुद से है  जोड़ा

कुछ लम्हे हैं पुराने जिनकी यादों में हम खो  जाते हैं
क्यूंकि नए लम्हे तो अब हमे ही शराब की तरह  पी जाते हैं

हर नशे से हम  दूर ही रहते हैं , मगर लगता है की तन्हाई के साथी वही सच्चे हैं 
नशे में बेसुध  होकर लोग जिए जाते हैं
जब छोड़ के  साथी अपने सारे चले जाते हैं
तन्हाई में बस ये  नशे ही सच्ची दोस्ती निभा जाते  हैं
नशा ही यार अपना और आशिक सच्चा है
देता है हमे ख़ुशी होठों से लगता है , और गम भी मिटता है
ज़िन्दगी तो कम्बखत वैसे ही काटने को दौड़ती है
नशा ही हमे ज़िन्दगी से बेहतर मौत के नजदीक  ले जाता है ।

by: Rohit Dubey

Views: 427

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on April 24, 2013 at 9:22am

yah kavita meri zindagi me hi aa gai thi, ab me maut se bacha magar mera punar janm jarur ho gaya.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 2:52pm

पलायन किसी रूप में हो कभी स्वीकार्य नहीं है. साहित्य में वीभत्सरस भी पलायन का पर्याय  हो कर यथार्थ का ही प्रस्तुतिकरण होता है.  व्यंग्य का भी अपना स्वरूप है. उसकी धार उलटबासियों में विशिष्ट होती है. ’योद्धा’ भाई जी.. . बहुत ही नकारात्मक सोच के साथ भिड़ रहे हैं इस ज़िन्दग़ी के साथ ?

मैं अभिव्यक्त ’नशा’ को प्रतीक या बिम्ब मान भी लूँ,  आपकी इन पंक्तियों के आवरण में अनुमोदित नहीं कर पा रहा हूँ.

शुभं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 28, 2013 at 8:17pm

अंतर्मन के भावों की, बेबसी और तन्हाई की नकारात्मकता की सुन्दर अभिव्यक्ति..

काव्य सृजन यदि सकारात्मक हो तभी सार्थकता रखता है... अन्यथा ऐसे सन्देश नकारात्मकता को ही विस्तार देते हैं.

शुभेच्छाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service