जब देखता हूँ इस युग के भारतवर्ष के मंत्रियों को
खौल उठता है दिल जब देखता हूँ भ्रष्टाचारियों को
हर सड़क पर खुदे हैं गड्ढे
हर गली में कचरों की भरमार
हर रोज़ अख़बारों में हत्या का समाचार
राजधानी होकर भी हर रोज़ होता बलात्कार
सदाचारियों से सरकार का नहीं कोई सारोकार
गरीबी बढती दिन पर दिन
सरकार करती रोज़ भ्रष्टाचार
सदाचारी मंत्रियों की बढती दरकार
दुष्कर्मियों पर परोपकार
सद्कर्मियों का तिरस्कार
मंत्रियों के पास धन की भरमार
आम नागरिकों को रोटी, कपडा ,मकान की दरकार
सत्यवादियों का तिरस्कार
भ्रष्टाचारियों को धन अपार
फिर भी मौन होने का ढोंग रचती सरकार
देश से नहीं इन्हें दौलत से है प्यार
रो रही मेरी भारत माता तड़फ तड़फ कर
हम जैसे पुत्र जो सदाचारी है माँ को अब नहीं रोते देख सकते
अब कदम उठाकर अपने देश को सुधारने हैं चलते
अपने कर्म को प्राथमिकता और दौलत का मोह हैं त्यागते
अपनी माँ का आंचल हैं थामते
उनके मुख को फिर से मुस्कराहट से हैं भरते
जय मेरी प्यारी भारत माँ , हम सदा ही आपको वदते ||
Comment
वर्त्तमान परिस्थितियों पर सुन्दर रचना.
दूबे जी , आपकी रचना में हर भले नागरीक की आवाज़ छुपी हुई है . प्रयास अच्छी है. /
सादर
कुंती .
श्री रोहित जी लिखते रहिये । भाव और प्रवाह बनते बनते आने वाली चीज है । हम सब उसी पथ के राही है ।
हालातेहाजरा पर अंतर का आक्रोश मुखरित हो उठा है..
पर गठन अभी और कसाव मांगता है
हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.
wah kya khoob likhi h....dil bhar aya bharat mata k lie
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online