For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मान जाओ न

मचल उठता है
ये ह्रदय
जब आती है
दूर कहीं से कोयल की
कूक सी मीठी
सदा

पीपल के पत्तों की तरह  
मंद हवा के झोंको से
जाड़े के दिनों में
थरथराते कांपते
जिस्म को
गुनगुना कर जाती है
कपास सी नाजुक
गुनगुनी सी छुअन

कुम्हार की ईंटों की
रक्त तप्त भट्टी की तरह
जेठ की दुपहरी में
कडकडाती धूप
में जलते जिस्म को
खुनक कर जाती है 
आसमान में उड़ते
स्याह काले बादलों सी
ठंडी छाया

किसी मयखाने से
निकले शराबी की तरह
बहकते हुए मन को
और बहका जाती है
बहार में खिले
फूलों से उडती मादक गंध

निराशा हताशा लिए
मृत हो चुके दिल में 
अचेतन में
आ जाती है चेतना
खुशियाँ उमंग
जैसे जड़ी बूटी हो कोई
अमृत संजीवनी

हे प्रिये
तुम मेरी प्रकृति हो
और तुम बिन
मेरा संसार
अधूरा है
और अधूरेपन का एहसास
किसी कांटे की चुभन से कम नहीं
ये पीड़ा किसी गहरे जख्म से रिस रहे
रक्त को देख मन में होने वाली
पीड़ादायक अनुभूतियों से
अधिक दुखदायी है


हे प्रिये
यदि में हूँ
तो मेरा अस्तित्व तुम से है
तुम मेरी आत्मा हो
मैं यदि मैं ही रह गया
तो समझो अचेत हूँ
मैं में चेतना
तो हम से है
और तुम बिन
मैं हम कैसे हो जाऊं ??


हे प्रिये
तुम्हारे रूठने से
मेरे जीवन की गति
दुर्गति में बदल गयी है
और मैं मूर्ख हूँ
तुम जानती हो
मुझे नहीं आ रहा है
तुम्हे मनाना
मैंने वो गलतियां स्वीकार कर लीं है
जो मेरी गलतियां भी नहीं है
किन्तु तुम बिन जीने की
कल्पना
भी दुखदायी होती है
अब मान जाओ न
हे प्रिये
मुझे मेरा अपराधी न बनाओं
हे प्रिये मान जाओ न

  • संदीप पटेल "दीप"

Views: 335

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 9:03am

आदरणीय नीरज सर जी , आदरणीय विशाल चर्चित भाई जी , और आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार
गुरुवर मैं अभी धीरे धीरे आप सभी के स्नेह और ज्ञान के जल से सिंचित हो कर मजबूत हो रहा हूँ अभी मैं पौधा ही हूँ आप सभी की कृपा ऐसी ही बनी रही तो जरुर एक दिन ये पौधा बड़ा वृक्ष बन जायेगा .....स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:28am

अत्यन्त भावपूर्ण.......सार्थक रचना !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 1:06pm

आत्म-कथ्यात्मक रचनाओं की परंपरा में आपकी यह प्रस्तुति है किंतु शब्द एवं भाव का संतुलन कई जगह संयत नहीं रह पाया है. आप इस रचना को और बेहतर मोडिफाई कर सकते हैं, संदीपजी.

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service