For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निश्चेष्ट धरा को

अपनी गोद में उठाए

समुद्र हाहाकार कर उठा

थरथराते होंठो से

अस्फुट से शब्द लहराए

अ...ब...और ...स...हा... न...हीं जा...ता..

वि...धा....ता!!

अशांत समुद्र ज्वार को

सम्भाल नहीं पा रहा था

फिर भी धरा को समझा रहा था

आओ सो जाते हैं

सब कुछ भूल जाते हैं

आदि से लेकर अंत तक

कहाँ रह पाए मर्यादित

मनुज की तृष्णा और लालसा से

सदैव रहे आच्छादित

आज जबकि काल की जिह्वा

लपलपा रही है..

कर्मों का खाता बन्द करते हैं

आओ हम तुम सो जाते हैं।  

पहुँचा हुआ पीर

वह पर्वत गहन गम्भीर  

दरक कर हिल उठा

दरकना...टूटना ...बिखरना

पल भर में ही हो उठा खील खील बिखर उठा

प्रकृति हतप्रभ और पुरुष मौन था ...  

 

 

  अंतरिक्ष की छाती पर

बेसुध पड़े ग्रह नक्षत्रों में

गुरु अब भी होश में थे

सूर्य के प्रकोप से वह भी

कहाँ बच पाए

चरणॉं में एक क्षुद्र ग्रह

सिसक रहा था ..

बार-बार जाने क्या-क्या

पूछ रहा था

उस शावक ग्रह के पीठ पर

हाथ फेरते

गुरु स्वयं कांप रहे थे

फिर भी वह कह रहे थे

“यात्रा समाप्त हुई

दायित्व पूर्ण हुआ

अब चल अपने घर

जहाँ कोई क्षुद्र नहीं

कोई प्रबुद्ध नहीं

महा प्रयाण.... हां वत्स

वह क्षुद्र ग्रह बस टूटने ही वाला था

जीवन का मोह कहाँ छूटने  वाला था

कसकर गुरु की दाढ़ी थाम ली

क्लांत गुरु पीड़ा में भी हंस पड़े

और हौले से अपनी दाढ़ी छुड़ाई

क्षुद्र ग्रह चल पड़ा

अंतिम परिणति की ओर

आज टूटते तारे को देख

कोई मनोकामना  

मांगने को शेष ना रही

सृष्टि यह उजड़ी गृहस्थी

बस देखती रही ...

प्रकृति हतप्रभ और पुरुष मौन था ...  

Views: 440

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on May 17, 2013 at 8:57pm

पहुँचा हुआ पीर

वह पर्वत गहन गम्भीर  

दरक कर हिल उठा

दरकना...टूटना ...बिखरना

पल भर में ही हो उठा खील खील बिखर उठा

प्रकृति हतप्रभ और पुरुष मौन था ...  

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 26, 2012 at 12:20am

प्रलय को अपनी कल्पना के जरिये शब्दों में चित्रित करने का एक अत्यन्त सुन्दर - सार्थक एवं सराह्नीय प्रयास....... सारिका जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें !!!!

Comment by Satish Agnihotri on September 24, 2012 at 11:27pm

प्रलय सा अनुभव ....जैसे सब कुछ ..सामने ही ...दृष्टिगोचर है !!!!!!!!!!!!!

बहुत बहुत स्वागत ..एवं बधाई ..सारिका जी ...जिस तरह का लेखन शमता आपके पास है ..वो ईश्वरीय दें ही  होती है....

Comment by Bhawesh Rajpal on September 24, 2012 at 4:38pm

दिल दहला दिया !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 5:32am

पहुँचा हुआ पीर,वह पर्वत गहन गम्भीर  

दरक कर हिल उठा.दरकना...टूटना ...बिखरना

पल भर में ही हो उठा खील खील बिखर उठा

प्याले पर जब प्रक्रति ही हतप्रभ तो फिर कुछ भी नहीं | 

और तो और देव गुरु भी असहाय, प्रक्रति हतप्रभ और पुरुष मौन,सुन्दर अभिव्यक्ति गुल सारिका जी, बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय दयाराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई आपको  अच्छे मतले से ग़ज़ल की शुरुआत के लिए…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रास्ता  घर  का  दूसरा  तो  नहीं  जीना मरना अलग हुआ तो…"
17 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"2122 1212 22 दिल को पत्थर बना दिया तो नहीं  वो किसी याद का किला तो नहीं 1 कुछ नशा रात मुझपे…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service