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सरकार नहीं यह चेत रही......

एक प्रयास 'मत्त सवैया' यानी 'राधेश्यामी छंद' का......

सरकार नहीं यह चेत रही, महँगाई जान जलाती है |
रोटी भी मुश्किल होय रही, दिन रात रुलाई आती है | |
हर पक्ष - विपक्ष नहीं अपना, सब अपना काम बनाते हैं |
हैं दुश्मन सबय गरीबन के, सब लूट - लूट के जाते हैं | |

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 22, 2012 at 8:50pm

आपके इस स्नेह के लिये हृदय से आभारी हूं सुरेन्द्र भाई जी........!!!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 30, 2012 at 1:12am

हैं दुश्मन सबय गरीबन के, सब लूट - लूट के जाते हैं |

नैन छुपा ये हँसते हैं और मखमल चैन से सोते हैं 

प्रिय विशाल जी ..सुन्दर ....जनता का दर्द उमड़ पडा 

अपना स्नेह बनाये रखें 
भ्रमर ५ 
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
भ्रमर का दर्द और दर्पण 
जय श्री राधे 

 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 26, 2012 at 12:24am

बहुत  - बहुत शुक्रिया सन्दीप भाई !!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 9:27am

बढ़िया बहुत सुन्दर भाई जी
बधाई हो इस छंद रचना हेतु

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:20am

धन्यवाद सारिका जी..........!!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:19am

दिल से शुक्र्गुजार हूं आपका भावेश राज्पाल भाई........सही कहा आपने..........बडी सोचनीय स्थिति से गुजर रहा है देश.......!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:17am

हृदय से आभारी हूं आपका बृजेश कान्त भाई........!!!!!

Comment by Gul Sarika Thakur on September 24, 2012 at 11:10pm

teekshna kataksha ...

Comment by Bhawesh Rajpal on September 24, 2012 at 4:34pm
विशाल जी  , बहुत बहुत बधाई ! यही कटु सत्य है , न पक्ष रहा न विपक्ष , सबको अपने घर भरने से फुर्सत नहीं , 
जनता की कौन सोचे  !
Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 11:59pm

आपका प्रयास पूर्ण रूप से सफल हुआ है विशाल जी, बहुत बधाई

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