शहर में शांति है
आज गाँधी जी के बुत के सामने फिर दंगे भड़क गए
धर्म के नाम पर लोग भिड़ गए मेरे शहर में
कितने ही मासूमों का खून बह निकला सड़कों पर
दिनभर से शहर में कर्फ्यू लगा है
Comment
हर रोज बलात्कार होते हैं मेरे शहर में
आबरू लूटती है चोराहों पर दोपहर में
नन्ही बच्चिओं को मार देते हैं जन्म से पहले
दर्द भरी चीखें निकलती हैं अँधेरी गलियों से
और प्रशासन कह रहा है शहर में शांति है |
सच में वीर प्रकाश जी दुर्दशा पसरी है प्रशासन की आँखें हैं ही कहाँ ?? ..बहुत सुन्दर सन्देश ...सुन्दर रचना ....
यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है प्रशासन को दिखाई भी नहीं देता और सुनाई भी नहीं देता ये आक्रोश आपकी रचना में बखूबी झलक रहा है बहुत बढ़िया प्रस्तुति
अपनी सामाजिक संवेदनशीलता को यथार्थपरक सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपनें इस रचना में. हार्दिक बधाई वीर प्रकाश जी
वाह , वीर प्रकाश जी , नपुंसक प्रशासन का क्या खूबसूरत चित्रण किया है , वाह, आप को बहुत बहुत बधाई ...
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