हम स्वछंद हैं कवि .....
हमको नहीं छंद अलंकार का है ज्ञान ,
हम स्वछंद हैं कवि बस भाव हैं प्रधान .
आचार्य गिन मात्रा कहते लिखो निर्धन ,
लिखा अगर गरीब तो क्या हो जायेगा श्रीमान !
हालात जो देखे सीधे सीधे लिख दिए ,
पढ़कर ''वे'' बोले व्याकरण का कुछ तो रखते ध्यान .
कहते अलंकार से कविता का कर श्रृंगार ,
हम 'रबड़ के छल्ले ' देते न उनको कान .
है नहीं कविता में अपनी प्रतीक ,बिम्ब,गुण ,
जूनून है बस लिखने का न आप हों परेशान .
हमको नहीं छंद , अलंकार का है ज्ञान ,
हम स्वछन्द हैं कवि बस भाव है प्रधान !!
डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'
Comment
बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया सिखा जी
बहुत उत्तम सन्देश परक रचना के बधाई स्वीकार कीजिये
डॉ. शिखा जी आपकी स्वछंदता को कोटि कोटि प्रणाम व सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
बहुत सादगी और बेबाकी से बात कही है शिखा जी आपने ............. फिर भी
ज्ञान ,प्रधान ,ध्यान
श्रीमान कान, परेशान
आदी तुक युक्त शब्दों का
है आपको सम्यक ज्ञान
काव्य से आप नहीं
लगती अनजान
यूं ही पहनाती रहिये
अपने भावों को
शब्दों का परिधान .....शुभकामनाएं
बहुत स्वछन्द भावाभिव्यक्ति हर इंसान की अपनी अलग पहचान है
सभी पहले होते है कवि स्वछन्द
सुन्दर आत्म-स्वीकारोक्त अभिव्यक्ति.
स्वच्छंदता के दायरे बहुत बड़े होते है, और उसमें भाव बिखर भी सकते है, पर यदि उन भावों को शिल्प की सीमाएं प्रवाह व व्याकरण का श्रृंगार मिले तो बिखराव, निखार में बदल जाता है....... आगे रचनाकार क्या तय करना चाहता है, इसकी स्वच्छंदता तो उसको सदा ही रहती है..
हार्दिक शुभकामनाएं .
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