इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों आप सभी के जानिब
बहर है--> मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
वजन है--> २२१-२१२१-१२२१-२१२
हिंदी का रंग आज यूँ रंगीन हो गया
भारत बदल के जैसे अभी चीन हो गया
मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया
दिल टूटने पे आज मैं ग़मगीन हो गया
इक हर्फ़ ही लिखा था मुहब्बत के रंग से
सारा सफाह शर्म से रंगीन हो गया
इस राह में पड़े जो कदम आपके कभी
दिल बिछ गया जमीन पे कालीन हो गया
अब दर्द जख्म और चुभन को लिए हुए
इंसान आज चोट का शौक़ीन हो गया
दिल आ गया खुदा पे तो फुर्सत किसे रही
उसकी इबादतों में जो तल्लीन हो गया
देखो शरारती था जो बिगड़ा हुआ सा था
शादी के बाद कैसे वो शालीन हो गया
रुकता नहीं हैं आँख से बहता है जख्म पर
खारा ये आब जख्म पे प्रोटीन हो गया
तूफ़ान ला हवा ने करीं लाख कोशिशें
पर दीप तो बुझा न वो तौहीन हो गया
संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा जबलपुर (म.प्र.)
Comment
देखो शरारती था जो बिगड़ा हुआ सा था
शादी के बाद कैसे वो शालीन हो गया
क्या शानदार कहा है संदीप जी, बहुत बधाई आपको
इक हर्फ़ ही लिखा था मुहब्बत के रंग से
सारा सफाह शर्म से रंगीन हो गया
इस राह में पड़े जो कदम आपके कभी
दिल बिछ गया जमीन पे कालीन हो गया....वाह क्या बात
देखो शरारती था जो बिगड़ा हुआ सा था
शादी के बाद कैसे वो शालीन हो गया .....अच्छा जी
रुकता नहीं हैं आँख से बहता है जख्म पर
खारा ये आब जख्म पे प्रोटीन हो गया............वाह वाह एकदम नया रंग
ले ले के जख्म और चुभन दिल में बारहा
इंसान आज चोट का शौक़ीन हो गया
दिल आ गया खुदा पे तो फुर्सत किसे रही
उसकी इबादतों में जो तल्लीन हो गया...और फिर ये भी
तरह तरह की बातों से जमा दी आपने ग़ज़ल .........मज़ा आगया पढ़ कर ....दिली मुबारकबाद संदीप
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