For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


======ग़ज़ल========
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम
वजन- १२२ १२२ १२२ १२२


छुड़ा हाथ अपना वो जाने लगे हैं
मनाने में जिनको जमाने लगे हैं

लिया था ये वादा गिराना न आँसू
वो यादों में आ कर रुलाने लगे हैं

कहीं भूल जाऊँ न मैं भी उसे तो
वो ख्वाबों में आ कर जगाने लगे हैं

रफू कर रहा हूँ मैं चादर वफा की
वो खंजर दगा का चलाने लगे है
 
कभी जिसकी नज़रें हकारत भरी थीं 
मुझे अपना हमदम बताने लगे हैं

कभी जिसके दर हाथ जोड़े खड़े थे
सियासी उन्हें भी सताने लगे हैं

मेरे दिल को गम से भिगोने की खातिर
वो आँखों में शबनम सजाने लगे हैं

जिसे ये पता ही नहीं दर्द है क्या

वो जख्मों पे मरहम लगाने लगे हैं

वो तन्हा अंधेरों से डरने लगे यूँ
शमा को बुझा दिल जलाने लगे हैं
 
हमें "दीप" गर्दिश से चाहत हुई तो
चरागों को हम भी बुझाने लगे हैं

संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा जबलपुर (म. प्र.)

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 9, 2012 at 8:18am

वाह! बहुत सुन्दर गजल आद. संदीप जी बधाई स्वीकारें.

Comment by वीनस केसरी on October 8, 2012 at 12:34am

बहुत खूब संदीप जी कई शेर अच्छे बने हैं
ढेर सारी बधाई व दाद क़ुबूल करें

मतला में अपना कि जगह फिर से रख कर भी देखें,
कभी कभी एक दो शब्द के बदलाव भर से शेर कई गुना अधिक खिल जाता है 
कहन के स्तर पर कई शेर और मेहनत मांग रहे हैं



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2012 at 10:16pm

दिल में उतर जाने वाली बेहद खूबसूरत ग़ज़ल आ. संदीप जी, हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 6, 2012 at 9:48pm

संदीप साहब

रफू कर रहा हूँ मैं चादर वफा की
वो खंजर दगा का चलाने लगे है

इस शेर ने दिल चुरा लिया लिया| कमाल किया है आपने| दिली दाद कबूलिये|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2012 at 5:42pm

जिसे ये पता ही नहीं दर्द है क्या 
वो जख्मों पे मरहम लगाने लगे हैं

वो तन्हा अंधेरों से डरने लगे यूँ 
शमा को बुझा दिल जलाने लगे हैं
 कितनी तारीफ करूँ इस ग़ज़ल की उम्दा ,बेहतरीन ..वाह इन दो शेरों में पूरे नंबर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2012 at 4:15pm

======ग़ज़ल========
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम
वजन- १२२ १२२ १२२ १२२

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
14 hours ago
Admin posted discussions
16 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
yesterday
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service