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इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों आप सभी के जानिब
बहर है--> मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
वजन है--> २२१-२१२१-१२२१-२१२

हिंदी का रंग आज यूँ रंगीन हो गया
भारत बदल के जैसे अभी चीन हो गया

मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया
दिल टूटने पे आज मैं ग़मगीन हो गया

इक हर्फ़ ही लिखा था मुहब्बत के रंग से
सारा सफाह शर्म से रंगीन हो गया

इस राह में पड़े जो कदम आपके कभी
दिल बिछ गया जमीन पे कालीन हो गया

अब दर्द जख्म और चुभन को लिए हुए
इंसान आज चोट का शौक़ीन हो गया

दिल आ गया खुदा पे तो फुर्सत किसे रही
उसकी इबादतों में जो तल्लीन हो गया

देखो शरारती था जो बिगड़ा हुआ सा था
शादी के बाद कैसे वो शालीन हो गया

रुकता नहीं हैं आँख से बहता है जख्म पर
खारा ये आब जख्म पे प्रोटीन हो गया

तूफ़ान ला हवा ने करीं लाख कोशिशें
पर दीप तो बुझा न वो तौहीन हो गया


संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा जबलपुर (म.प्र.)


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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:35am

आदरणीय अम्बरीश सर जी , आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी इस ग़ज़ल को सराह कर मेरी लेखनी को बल प्रदान किया इसके लिए मैं आपका सदैव आभारी हूँ
अनुज पर स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये ताकि मेरे मार्ग में जो भी बाधाएं आयें उनका डट कर मुकाबला कर सकूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2012 at 5:00pm

मतले से शुरु क्या हुआ पढ़ता ही चला गया. मतले ने देर तक उलझाये रखा. फिर रंग से और उसके नाम पर खेली जने वाली कारिस्तानियाँ समझ में आयीं.

सभी शेर खुल रहे हैं और खिल भी रहे हैं. नया अंदाज़ पसंद आया.  बधाई !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 6, 2012 at 11:30am

मतले से लेकर मक्ते तक सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं ! इस शानदार गज़ल के लिए बहुत बहुत दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2012 at 11:19am

आदरणीय वीनस जी , आदरणीया सीमा जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी , आदरणीय राजेश जी , आदरणीय भाई मृदु जी
आदरणीय शशि जी , आदरणीय नीलांश जी, आदरणीय सुजान जी
आप सभी मित्रों अग्रजों गुरुजनों का ह्रदय से शुक्रिया मुझे सराहने के लिए
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये मुझ पर

Comment by वीनस केसरी on October 6, 2012 at 1:08am

वाह वाह संदीप जी उस्तादाना कलाम पेश किया है
समृद्ध कहन और साधा हुआ अंदाज आपकी सोच  और बदलाव को दर्शा रहा है

मैं भी यही चाहता था बस कभी आपसे कहा नहीं, सोचा आप खुद समझ लें तो जियादा बढ़िया रहे

खूब ढेर सारी दाद स्वीकार करें
आपने बहुत कुछ साध लिया है अब बाकी चीजें भी सधती जायेंगी  
सादर

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on October 5, 2012 at 11:59pm

गजल के सभी अशआर कई बार पढ़े किसी एक कि तारीफ क्या करू सम्पूर्ण गजल ही उन्नत भावों से परिपूर्ण है इस कृतित्व पर हार्दिक बधाई स्वीकार करे

Comment by Nilansh on October 5, 2012 at 11:06pm

सुंदर ग़ज़ल संदीप जी ,बधाई आपको 

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 5, 2012 at 8:12pm
bhut khoob naye dhang ki ghazal likhi hai
Comment by Shashi Mehra on October 5, 2012 at 7:18pm

संदीप जी बहुत ही खुबसूरत ख्याल पेश किया है आपने, दाद कबूल हो | मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया 
दिल टूटने पे आज मैं ग़मगीन हो गया || क्या बात है, बहुत ही खूब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2012 at 5:20pm

बहुत अच्छी मजेदार ग़ज़ल कही है बधाई आपको 

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