For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |

माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह करना पड़ा | 2 वर्ष बाद अपने दोस्तों के साथ चौथमाता के दर्शन करने और अपनी दीदी से राखी बंधवा कर आने की कह कर गया सबल लौट कर नहीं आया | एक सप्ताह बाद किसी ने बताया की एक पुलिस वाला किसी की चौथ-का-बरवाडा स्टेशन के पास रेल से कटकर मृत्यु होने की बात कहते हुए, और परिजनो की तलाश में इधर आया था | वहां जाने पर पता लगा कि पुलिस ने लावारिश समझ लाश को जला दिया है | उसके गम में माँ बीमार रहने लगी और अंत में स्वर्ग पधार गयी |

एक बार निर्मल ने अपने पोते के जन्म दिन महोत्सव पर गणमान्य लोगो को बुलाया | वहां अपने पिता और छोटे भाई सबल का बड़ा चित्र लगाकर माला पहना रखी थी । उत्सव से पूर्व मुख्य अतिथि के हाथों दीप प्रजल्वित कर पुष्पांजली दी गयी । पास ही खड़े एक व्यक्ति के मुंह से अचानक निकल पड़ा "जीते जी तो घोर यातना देते रहे, अब पूजा कर महमा मंडित कर रहे है"| निर्मल को आवाज जानी पहचानी सी लगी । निर्मल ने ज्यो ही उसकी ओर देखा, वहां कोई नजर नहीं आया । बरबस ही निर्मल के कानो में ये शब्द अब भी यदा कदा गूंजते और कचोटते रहते है |
निर्मल के कानो में वह आवाज बार बार गूंजती थी | पुलिस के कथनानुसार तो लावारिश समझ सबल की लाश का दाह संस्कार किया जा चूका था, फिर उस समारोह में सबल की आवाज कैसे सुनाई दी | और अगर वह सबल ही आवाज थी, तो फिर वह गायब या वहां से अचानक ओझल क्यों हो गया | एक रात निर्मल को सपने में सबल कह रहा था ""आप तो न भाभी को समझा सकते थे, और न ही उनको डांटकर अशांति फैलाना चाहते थे | परमै भी तो माँ का दुःख और भाभी के ताने सहन नहीं कर पा रहा था | आप  लोग माँ,बांप,पति,पत्नी, बेटे और बहु का तो श्राद्ध निकालते हो, पर कंवारे भाई का न तो श्राद्ध ही निकालते हो और न ही गया जी छोड़ कर आये, फिर समारोह में पुष्पांजलि देकर महिमा मंडित करने का लोक दिखावा क्यों कर रहे हो | 


- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2012 at 9:27pm

शब्द कचोटते है को पसंद (like )करने हेतु धन्यवाद वसुधा निगम जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2012 at 6:07pm

कथा के मर्म को पहचान सार्थकता बताने के लिए हार्दिक धन्यवाद विनीता शुक्ला जी 

Comment by Vinita Shukla on October 15, 2012 at 12:50pm

अपनों के ही प्रति, असंवेदनशीलता का, मार्मिक चित्रण. सार्थक कथा को प्रस्तुत करने हेतु बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2012 at 8:59am

बिलकुल सही कहाँ आपने सीमा जी, इंसान अपने आप से जब झूट नहीं छिपा सकता तो फिर उसकी आत्मा तो जीवें भर कचोटती ही रहेगी और वह पश्चाताप की आग में जलता ही रहेगा | मेरी कहानी को आपने पसंद कर प्रमाणित किया हार्दिक आभार 

Comment by seema agrawal on October 14, 2012 at 10:15pm

अंतरात्मा की आवाज़ कभी झूठी नहीं होती और न ही कभी पीछा छोड़ती है ..इंसान सारी दुनिया से सत्य छुपा सकता है पर स्वयं से नहीं 

सही मनोविश्लेषण करती कथा 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 14, 2012 at 8:58pm

आदरणीय गणेशजी बागीजी, रचना पोस्ट करते समय आखिरी पहरा छूट गया था,

जिसे अब जोड़ा गया है, कृपया पुनः अवलोकन कर आशीर्वाद प्रदान करे |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2012 at 11:40am

सीधी सपाट बातें, लेखक क्या विशेष कहना चाह रहे हैं , मैं नहीं समझ सका |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service