पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |
माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह करना पड़ा | 2 वर्ष बाद अपने दोस्तों के साथ चौथमाता के दर्शन करने और अपनी दीदी से राखी बंधवा कर आने की कह कर गया सबल लौट कर नहीं आया | एक सप्ताह बाद किसी ने बताया की एक पुलिस वाला किसी की चौथ-का-बरवाडा स्टेशन के पास रेल से कटकर मृत्यु होने की बात कहते हुए, और परिजनो की तलाश में इधर आया था | वहां जाने पर पता लगा कि पुलिस ने लावारिश समझ लाश को जला दिया है | उसके गम में माँ बीमार रहने लगी और अंत में स्वर्ग पधार गयी |
एक बार निर्मल ने अपने पोते के जन्म दिन महोत्सव पर गणमान्य लोगो को बुलाया | वहां अपने पिता और छोटे भाई सबल का बड़ा चित्र लगाकर माला पहना रखी थी । उत्सव से पूर्व मुख्य अतिथि के हाथों दीप प्रजल्वित कर पुष्पांजली दी गयी । पास ही खड़े एक व्यक्ति के मुंह से अचानक निकल पड़ा "जीते जी तो घोर यातना देते रहे, अब पूजा कर महमा मंडित कर रहे है"| निर्मल को आवाज जानी पहचानी सी लगी । निर्मल ने ज्यो ही उसकी ओर देखा, वहां कोई नजर नहीं आया । बरबस ही निर्मल के कानो में ये शब्द अब भी यदा कदा गूंजते और कचोटते रहते है |
निर्मल के कानो में वह आवाज बार बार गूंजती थी | पुलिस के कथनानुसार तो लावारिश समझ सबल की लाश का दाह संस्कार किया जा चूका था, फिर उस समारोह में सबल की आवाज कैसे सुनाई दी | और अगर वह सबल ही आवाज थी, तो फिर वह गायब या वहां से अचानक ओझल क्यों हो गया | एक रात निर्मल को सपने में सबल कह रहा था ""आप तो न भाभी को समझा सकते थे, और न ही उनको डांटकर अशांति फैलाना चाहते थे | परमै भी तो माँ का दुःख और भाभी के ताने सहन नहीं कर पा रहा था | आप लोग माँ,बांप,पति,पत्नी, बेटे और बहु का तो श्राद्ध निकालते हो, पर कंवारे भाई का न तो श्राद्ध ही निकालते हो और न ही गया जी छोड़ कर आये, फिर समारोह में पुष्पांजलि देकर महिमा मंडित करने का लोक दिखावा क्यों कर रहे हो |
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
शब्द कचोटते है को पसंद (like )करने हेतु धन्यवाद वसुधा निगम जी
कथा के मर्म को पहचान सार्थकता बताने के लिए हार्दिक धन्यवाद विनीता शुक्ला जी
अपनों के ही प्रति, असंवेदनशीलता का, मार्मिक चित्रण. सार्थक कथा को प्रस्तुत करने हेतु बधाई.
बिलकुल सही कहाँ आपने सीमा जी, इंसान अपने आप से जब झूट नहीं छिपा सकता तो फिर उसकी आत्मा तो जीवें भर कचोटती ही रहेगी और वह पश्चाताप की आग में जलता ही रहेगा | मेरी कहानी को आपने पसंद कर प्रमाणित किया हार्दिक आभार
अंतरात्मा की आवाज़ कभी झूठी नहीं होती और न ही कभी पीछा छोड़ती है ..इंसान सारी दुनिया से सत्य छुपा सकता है पर स्वयं से नहीं
सही मनोविश्लेषण करती कथा
आदरणीय गणेशजी बागीजी, रचना पोस्ट करते समय आखिरी पहरा छूट गया था,
सीधी सपाट बातें, लेखक क्या विशेष कहना चाह रहे हैं , मैं नहीं समझ सका |
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