पाप का ना भागी बन,मौन रहा क्यों साध,
मौन साध हामी भरे, वह भी है अपराध |
अपराध अगर यूँ करे, कौन करेगा माफ़,
वक्त लिखेगा एक दिन, दोषी तुझको साफ |
जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |
मानव में न भेद करे, प्रभु सभी के साथ,
प्रभु सभी के साथ है,पकड़ कर्म का हाथ |
कर्म का फल देना ही, प्रभु के लेख माय,
प्रभु करेगा भला ही, गुरु भी यही बताय |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
आदरणीय लक्ष्मण जी ,
छंद विधा में गेयता ,होती है भरपूर
आत्मसात कर लय लिखें, गणना करें ज़रूर
अपराध ही करता चले,कौन करेगा माफ़....इस पंक्ति के प्रथम चरण में अभी भी दोष है
पापाचारी को सदा ,कौन करेगा माफ़
वक्त लिखेगा एक दिन , दोषी तुझको साफ़
इसे यूं देखिये ............
कर्म मनुज का धर्म है, फल ईश्वर के हाथ
कर्मलीन जो आप तो ,संग हैं दीना नाथ
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी और डॉ. प्राची सिंहजी,सीमा अग्रवाल जी पर मैंने गौर किया है,उनकी टिपण्णी से लाभान्वित हुआ हु :-
आ. लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी, आपका सतत प्रयास आपको शुद्ध दोहा रचना के करीब ला रहा है. मात्रा गणना भी सधती जा रही है
हाँ लक्ष्मण जी आप प्रभु की मात्र ३ मान कर चले हैं पर प्र एक मात्रा गिना जाता है शुरू में ये गलती मुझसे भी होती थी आपके दोहों में बहुत निखार आता जा रहा है बहुत बधाई| सीमा जी की बात पर गौर करें |आप शीघ्र ही महारथ हांसिल कर लेंगे
जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |
वाह, बहुत सही बात कही है. पर इस वैश्विक माया में ज्ञान के अनेकानेक स्तर हैं, और इसलिए अज्ञान के भी अनेक सोपान. ज्ञानी भी अज्ञानी है यदि इसे परमसत्ता की अवस्था से देखा जाए. जीवन संस्कारों, प्रवृतियों और, स्मृतियों की सतत खुलती और बंद होती इक किताब है. खैर, जो भी है, आपके प्रयासों और इस दोहांवालि के लिए ढेर सारी बधाइयां भाई लक्ष्मण जी!
अच्छी प्रस्तुति । सीमा जी बात दोहा सीखने वाले हर लेखक के लिए लाभदायक है ।
आदरणीय लक्ष्मण जी आपका सतत प्रयास रंग ला रहा है और इस बार प्रस्तुत दोहों में वह स्पष्ट दिख रहा है अभी भी बहुत कमियाँ हैं पर चर्चा का केंद्र उन पंक्तियों को बनाना चाहूंगी जो पूर्णतयः सही हैं ...बोल्ड अक्षर बिलकुल दुरुस्त हैं
पाप का ना भागी बन, मौन रहा क्यों साध, ......सुझाव /पाप कर्म को देख भी
मौन साध हामी भरे, वह भी है अपराध |
अपराध अगर यूँ करे, कौन करेगा माफ़,
वक्त लिखेगा एक दिन, दोषी तुझको साफ |.....सुझाव /पहली पंक्ति आप पुनः कहिये
जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |..........कोटि कोटि प्रणाम आपके कथ्य को और शिल्प के प्रति लगन को
.मानव में न भेद करे, प्रभु सभी के साथ,
प्रभु सभी के साथ है,पकड़ कर्म का हाथ |..... सुझाव /१/ भेद-भाव करता नही
२/ प्रभु के स्थान पर ईश कर लीजिये या सभी की जगह सब ही लिखिए
कर्म का फल देना ही, प्रभु के लेख माय,
प्रभु करेगा भला ही, गुरु भी यही बताय |...इस दोहे को एक बार फिर कहिये
विषयवस्तु के लिए बहुत बहुत बधाई
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